कलक्टर की हत्या
( 2 )
यह मन्दिर नगर के एक मोहलते के बीच में था । राय साहब सेठ कुंजबिहारी लाल ने अपनी वृद्धा माता के आग्रह पर श्री श्यामाचरण को इसमें पुजारी नियुक्त कर दिया पं . श्यामाचरण अपने अकेले पुत्र मधुसूदन के साथ मन्दिर के पिछवाड़े वाले घर में रहता था । वह पुराने विचारों का रूढ़िवादी ब्राह्मण था । संसार की प्रगति से सर्वथा पृथक , सागर में द्वीप की भाँति , अपने विचारों पर दृढ़ , संसार सागर की तरंगों की अवहेलना करता हुआ , अपने में लीन था । मधुसूदन पिता का लाड़ला पुत्र था । उसकी माँ का देहान्त उसी समय हो गया था , जब उसने इस संसार की वायु में पहला साँस खींचा था । तब से माता से भी अधिक स्नेह से पिता बालक का लालन – पालन करता आ रहा था । उसने बहुत कठिनाई से उसे पालकर बड़ा किया था , परन्तु इस परिश्रम में भी वह माँ के भाग का प्रेम , स्नेह और वात्सल्य भूला नहीं था । मधुसूदन को यह कभी अनुभव नहीं हुआ कि वह मातृ – विहीन है । उसके लिए श्यामाचरण माता , पिता ओर मित्र सब कुछ था । मधुसूदन अति निर्मल बुद्धि का था । संस्कृत में शास्त्री , अंग्रेजी में बी.ए. हिन्दी में साहित्यरत्न , गायन – विद्या में आचार्य , चित्रकला में निपुण . तात्पर्य यह कि अनेक गुण- सम्पन्न था । चौबीस वर्ष की आयु में इन सब बातों में उच्च कोटि कि योग्यता प्राप्त करना कोई साधारण बात नहीं थी । यह उसकी प्रतिज्ञा विशेष का ही परिणाम था कि एक छोटे से मन्दिर के पुजारी का लड़का होकर भी वह इतनी योग्यता प्राप्त कर सका था । मधुसूदन की शिक्षा का भार राय साहब ही उठा रहे थे । राय साहब मधुसूदन की प्रतिभा को समझ गये थे । जब वह बालक ही था तब से मधुसूदन ने उनके मन पर अपनी विशेषता की छाप लगा दी थी । वह आरम्भ से ही उसकी शिक्षा का प्रबंध कर रहे राय साहब की अपनी कोई सन्तान नहीं थी । निःसन्तान मनुष्य प्राय : तोता , मेना , कुत्ता , बिल्ली वगेरह पालने में बहुत उत्साह दिखाते हैं , परन्तु राय साहब का यह पसन्द नहीं था । वह मधुसूदन के ही पालन और शिक्षा में अपने मन की रिक्तता को भरने का प्रयत्न करते थे । जानना था कि राय साहसकते हैं न इस कथा की सीमा कतनी लम्बी तोड़ी
श्यामाचरण जानता था कि राय साहब उसके पुत्र पर विशेष कृपादृष्टि रखते हैं , परन्तु इस कृपा की सीमा कितनी लम्बी – चौड़ी है . इसका अनुमान वह नहीं लगा सकता था । इस सीमा के जानने का उसने कभी यत्न भी नहीं किया । मधुसूदन अंग्रेजी की शिक्षा प्राप्त करने पर भी प्राचीन सभ्यता का कट्टर अनुयायी था । वह उसके संस्कृत साहित्य के पढ़ने और भारतवर्ष की विभूति , प्राचीन सभ्यता , को एक पुजारी की ऐनक से देखने का कारण नहीं था , प्रत्युत यूरोपीय सभ्यता को भारतीय न्याय और सांख्य के काँटे पर तोलने के कारण भी था । उसने शेक्सपियर , कीट्स और शैली पढ़े थे , परन्तु जब इनकी तुलना वह कालिदास और भवभूति तथा व्यास और पातञ्जलि से करता था तो उन्हें समुद्र के किनारे पर केवल कंकर बटोरते हुए पाता था । कुछ दिन से पुजारी को ज्वर आ रहा था । वह स्वयं ठाकुरजी की पूजा करने मन्दिर में नहीं आ सका था । मन्दिर का काम आजकल मधुसूदन को करना होता था । प्रातः काल चार बजे उठना , मन्दिर को धो – पोंछकर साफ करना , स्नान इत्यादि कर तिलक – छाप लगा . छ : बजे पूजा पर बैठना होता था । छः बजे से लोगों का आना आरम्भ हो जाता था । जब से मधुसूदन ने मन्दिर का काम आरम्भ किया था . पूजा तथा देव – दर्शन करने वालों की संख्या बढ़ रही थीं । मधुसूदन ऊँचे . मीठे , संगीत भरे स्वर से पूजा के मन्त्र तथा श्लोक पढ़ता था । उसकी वाणी में माधुर्य , रस और प्रभाव था । मुख पर पूर्ण यौवन का तेज था । आँखों में ब्रह्मचर्य की मस्ती थी । देखने तथा सुनने वालों के हृदय गद्गद् हो जाते थे । देवमूर्ति की अपेक्षा पुजारी की यह सजीव मूर्ति कहीं अधिक आकर्षण का केन्द्र बन रही थी । पूजा करने वालों में स्त्रियों की संख्या पुरुषों से कहीं अधिक होती थी . परन्तु मधुसूदन की आँखें देवमूर्ति के चरणों पर गड़ी रहती थीं और उसे पता नहीं रहता था कि मन्दिर में कौन आया है और कौन नहीं आया ।
उक्त घटना का दिन पूर्णिमा का दिन था । सत्यनारायण की कथा सुबह से ही आरम्भ होकर बारह बजे तक चलती रहती थी । मन्दिर में विशेष समारोह था । इसका कारण भी मधुसूदन ही था । पुजारी की बीमारी के कारण कथा भी उसे ही करनी थी । सदा से भिन्न , कथा में सरलता , मधुरता और रोचकता अधिक थी । दृष्टांत पर दृष्टांत दिये जा रहे थे , सूक्तियों की भरमार थी । बीच में एक – दो भजन भी हो गये थे । यद्यपि कथा सदा से लम्बी हो गयी थी , परन्तु किसी का जी नहीं उकताया , न ही कोई घबराया । समय से पूर्व अटकर नहीं गया । सब मूर्तिमान बने , मुग्ध मन से कथा की नवीन विवेचना सुनते रहे । भाषा की सरलता ने कथा के आशय को साधारण अपढ़ स्त्रियों पर भी स्पष्ट कर दिया था , मानो पलक की झपक में समय व्यतीत हो गया
Author |
---|
Reviews
There are no reviews yet.