सुविचार मदन रहेजा
Suvichar Madan Raheja

50.00

AUTHOR: Madan Raheja ( मदन रहेजा)
SUBJECT: Suvichar Madan Raheja | सुविचार मदन रहेजा
CATEGORY: Suvichar
LANGUAGE: Hindi
EDITION: 2015
PAGES: 72
ISBN: 9788170771227
PACKING: Paperback
WEIGHT: 91 GRMS
Description

मेरी बात

एक छोटा बालक अपने माता-पिता के साथ चर्च में गया और उसने देखा कि एक पादरी हाथ जोड़े, आँखें बन्द किये मुँह से कुछ-कुछ बोल रहा है। उस पादरी को देखकर वह बच्चा भी उस पादरी के पास में जाकर खड़ा हो गया और पादरी की तरह हाथ जोड़े और मुँह से कुछ- कुछ बोलने लगा। उस पादरी का ध्यान उस बच्चे की ओर आकर्षित हुआ। कुछ देर के पश्चात् ईश्वर प्रार्थना समाप्त हुई। ‘

वह छोटा सा बालक भी चुप होकर वहीं खड़ा हो गया और पादरी को देखने लगा। पादरी की नजर उस बच्चे पर पड़ी और पूछा- “आप क्या कर रहे थे?” बच्चे ने कहा- “पहले आप बताइये कि आप क्या कर रहे थे?” पादरी ने उत्तर दिया- “मैं तो ईश्वर की पूजा-प्रार्थना कर रहा था। अब तुम बताओ कि तुम क्या कर रहे थे?” इस पर बच्चे ने कहा- “मैं भी ईश्वर की पूजा कर रहा था।”

इस पर पादरी ने आश्चर्य से पूछा- “मैं तो ईश्वर से अंग्रेजी में विस्तार से पूजा कर रहा था, पर तुम तो बहुत छोटे हो, पूरी तरह से अंग्रेजी जानते भी नहीं हो तो फिर बताओ कि तुम किस भाषा में पूजा कर रहे थे?” बच्चे ने जवाब दिया- “मैंने भी अंग्रेजी में ही पूजा कर रहा था।” पादरी हैरान हो गया, फिर पूछा- “तुम तो ठीक तरह से अंग्रेजी भाषा नहीं जानते तो पूजा कैसे कर सकते हो?” बच्चे ने कहा- “जिस अंग्रेज़ी भाषा में आप पूजा कर रहे थे उस में कितने अक्षर होते हैं?” पादरी ने जवाब दिया-“26 अक्षर।”

इस पर उस नन्हे से बच्चे ने कहा- “मुझे अंग्रेजी के (ए, बी, सी, डी) सब 26 अक्षर याद हैं और मैं वही 26 अक्षर दुहरा रहा था और इस तरह मैंने भी पूजा की है।” उस बच्चे की बात सुनकर वह पादरी चुप हो गया और बच्चे को गले से लगाया और मन ही मन प्रफुल्लित हो गया और कहने लगा-“ईश्वर की यही सच्ची पूजा है।”

परमात्मा की आराधना या उपासना करने के लिए किसी भाषा या शब्दों की आवश्यकता नहीं होती, मन्त्रों की जरूरत नहीं पड़ती, हाथ में माला फेरने की जरूरत नहीं पड़ती या फिर श्वेत अथवा रंगीन वस्त्रों की भी आवश्यकता नहीं पड़ती। आवश्यकता है तो मात्र सच्ची भावना और मन की शुद्धता की। बच्चे जैसी निर्मल, स्वच्छ और कोमल मन की। जिस परमात्मा ने इस संसार को बनाया है, उसने हम सबको बनाया है, उसका धन्यवाद करना, शुक्रिया करना और अच्छे कर्म करना ही सही मायनों में उसकी पूजा है। पूजा तो मन से होती है, हृदय की गहराइयों से होती है, अकलक में होती है, सबके सामने मन्त्र पाठ बोलकर नहीं। यह धर्म का दिखावा है।

प्रायः लोग मन्दिरों में जाकर मूर्ति के आगे उसकी आरती उतारने को ही ‘पूजा’ समझते हैं और उसी प्रकार साधु-सन्तों की भी आरती उतारते हैं। यह नास्तिकता है। पूजा का अर्थ होता है-‘आज्ञा का पालन करना’। बड़े-बुजुर्गों की पूजा करनी चाहिए अर्थात् उनकी उचित आज्ञाओं का पालन करना चाहिए। ‘ईश-पूजा’ का अर्थ है-ईश्वरीय वाणी ‘वेद’ को पढ़ना-पढ़ाना तथा वेदोक्त बातों का पालन करना एवं वैदिक धर्म का पालन करना।

प्रिय बन्धुओ ! वर्ष के बारह महीने, बारह महीनों के 52 सप्ताह और प्रत्येक सप्ताह के 7 दिन अर्थात् वर्ष के 365 दिन और हर चौथे वर्ष के 366 दिन। हम कितने दिनों के मेहमान बनकर इस दुनिया में रहने आये हैं? क्या कोई जानता है या जान सकता है? नहीं! कल अवश्य होगी परन्तु हमारे लिए ‘कल हो न हो’ कोई बता नहीं सकता। आशावादी बनना अच्छी बात है, बशर्ते हम ‘मनुष्य’ बनकर रहें फिर ‘कल हो या न हो’ इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।

मनुष्य जीवन कैसे बीत जाता है, पता ही नहीं चलता। पहले बचपन, फिर जवानी, बाद में बुढ़ापा और अन्त में राम नाम सत्। यही है मनुष्य की जीवन कहानी। जिन्दगी कब शुरू हुई और कैसे ख़त्म हो गई, कुछ मालूम नहीं पड़ता। कोई पैदा होने से पहले ही माँ की कोख में ही समाप्त हो जाता है,

कोई जन्म लेते ही चल बसता है, कोई कुछ ही मिनटों का मेहमान बनकर आता है और अपनी सूरत दिखाकर वापस चला जाता है तो कोई कुछ वर्षों के बाद संसार से रवाना हो जाता है। पता ही नहीं चलता कि आख़िर हम इस संसार में क्यों आते हैं और क्यों चले जाते हैं और कहाँ से आते हैं और कहाँ चले जाते हैं? हम क्यों आए और क्यों जाएँगे ?

प्रत्येक दिन हमारी जिन्दगी की नई शुरुआत होती है। कल का दिन बीत गया। आज का दिन मात्र आज के लिए ही है, फिर कभी नहीं आएगा अतः जो करना है हमें आज करना है और अभी करना है। समय के बारे में हिन्दी में एक बहुत अच्छी कहावत है- ‘काल करे सो आज कर, आज करे सो अब पल में प्रलय होएगी, बहुरी करेगा कब’। अर्थात् आज का काम कल पर मत छोड़ो, जो करना है,

आज ही करो, बल्कि अभी से करना प्रारम्भ करो क्योंकि अगले पल में क्या होने वाला है, कोई नहीं जानता। जितने भी शुभ कार्य हैं- अभी से करना प्रारम्भ कर दो और अशुभ कार्यों को अपने मन से निकाल दो, तो ही मनुष्य जीवन सफल होगा।

हमारा जीवन बीता जा रहा है परन्तु हम अपनी ही धुन में चले जा रहे हैं। हमने कभी अपना आत्मनिरीक्षण नहीं किया है कि हमने आज तक क्या किया है? यदि हम रोजाना कोई नई चीज सीखें और अपने जीवन में धारण करें तो हमारी जिन्दगी में नया मोड़ आ सकता है और हम प्रगति के मार्ग पर आगे बढ़ सकते हैं अर्थात् हम एक ही वर्ष में अनेक सुविचारों को अपने जीवन में अपना कर अनमोल जीवन को सुधार एवं सँवार सकते हैं।

शुभकामनाओं सहित

– मदन रहेजा

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