शिक्षा-शास्त्रम्
Shiksha Shastram

250.00

AUTHOR: Udayan Acharya
SUBJECT: शिक्षा-शास्त्रम् | Shiksha Shastram
CATEGORY: Upang
LANGUAGE: Hindi
EDITION: 2016
PAGES: 318
PACKING: Hard Cover
WEIGHT: 485 GRMS

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Description

कृतज्ञता – ज्ञापन

सब से प्रथम परमपिता परमात्मा को सश्रद्ध प्रणाम करता हूँ, जिनकी असीम कृपा प्रतिक्षण प्राप्त हो रही है। जिन्होंने मुझे यह जन्म प्रदान कर पालन-पोषण के साथ १२वीं कक्षा तक पढ़ाया और नैतिक, धार्मिक शिक्षा दी एवं मुझे अपने विचार के अनुकूल चलने के लिए पूर्ण स्वतन्त्रता दी है, उन पूज्य माता-पिता को भी प्रणाम करता हूँ। जिनके अमरग्रन्थ के स्वाध्याय से तथा जीवनी से वेद और वैदिक धर्म की रक्षा करने का दृढ़ संकल्प उत्पन्न हुआ, उन महर्षि देव दयानन्द को भी नम्रता के साथ नमन करता हूँ।

जिन्होंने मुझे वेद एवं वैदिक वाङ्मय को पढ़ने की प्रेरणा दी है, उन आचार्य श्री वेदव्रत मीमांसक जी को भी सविनय वन्दना करता हूँ। जिनकी अनुकम्पा से व्याकरणरूपी निर्गम भीषण वन में प्रवेश मिला उन आचार्य श्री स्वदेश जी (मथुरा) एवं आचार्य श्री वेदपाल सुनीथ जी (तिलोरा, अजमेर) को विनम्र प्रणतियाँ समर्पित करता हूँ।

जिनके आदर्शमय जीवन तथा प्रेमपूर्ण आशीर्वचनों से आज मैं अग्रसर हो रहा हूँ, अत्यन्त रुग्ण अवस्था में भी अपनी सम्पूर्ण ज्ञानधारा को मुझ में प्रवाहित किया, जिनसे केवल सम्पूर्ण वैदिक वाङ्मय का ज्ञान ही प्राप्त नहीं हुआ, अपितु शास्त्रों की जटिलताओं को सुलझाने की कुञ्जियाँ भी प्राप्त हुई हैं, उन पूज्य गुरुवर आचार्य श्री विजयपाल विद्यावारिधि जी को हृदयपूर्वक प्रणाम करना एवं कृतज्ञता को ज्ञापित करना मैं अपना परम कर्तव्य समझता हूँ।

पूज्य श्री स्वामी विवेकानन्द सरस्वती जी एवं समादरणीय श्री आचार्य प्रद्युम्न जी आदि को कृतज्ञता पूर्वक सादर अभिवन्दनायें समर्पित करता हूँ, जिन्होंने इस ग्रन्थ के पाण्डुलिपि प्रतियों को पढ़कर अपनी सम्मति तथा शुभ- कामनायें प्रेषित की हैं।

]पूज्य गुरुवर ने इस ग्रन्थ को ‘रामलाल कपूर ट्रस्ट’ की ओर से प्रकाशित करने का निर्णय लेकर इसके मुद्रण का सम्पूर्ण कार्यभार अपने ऊपर लिया, एतदर्थ श्रद्धेय गुरुवर को और ट्रस्ट के सभी अधिकारियों एवं सहयोगियों को भूरिशः धन्यवाद, साधुवाद ज्ञापित करता हूँ।

विनीत

उदयनाचार्य

सम्मति (१)

                          उदीयमान विद्वान् श्री उदयनाचार्य जी द्वारा लिखित ‘शिक्षा शास्त्र’ का ‘शिक्षातत्त्वालोक भाष्य’ की पाण्डुलिपि देखने को मिली। पढ़कर प्रसन्नता हुई। अतिलघुकलेवरयुक्त अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ शिक्षा का विशद विवेचन विद्वान् लेखक के दीर्घ अध्यवसाय एवं अध्ययन का परिचय प्रदान करता है।

वास्तव में शिक्षा को आचार्यों ने वेदाङ्ग क्यों स्वीकार किया है? और वह भी प्रथम । इसका ज्ञान एवं समाधान इस शिक्षातत्त्वालोक भाष्य के अध्ययन से स्पष्ट हो जाता है। शिक्षा सम्बन्धी प्रायः सभी वर्ण्य विषयों का प्रमाण- पुरस्सर विवेचन इसकी अपनी विशेषता है। मेरी दृष्टि में यह भाष्य विद्वानों एवं विद्यार्थियों के लिए समान रूप से उपयोगी सिद्ध होगा।

किन्हीं विशेष स्थलों के विशद पर्यालोचन से तो यह भी प्रकट होता है कि छात्रों की अपेक्षा अध्यापकों एवं शोधार्थी विद्वानों के लिए यह अधिक उपयोगी है। यद्यपि लेखक द्वारा दोनों को ही दृष्टि में रखते हुए प्रयास किया गया है। शिक्षातत्त्वालोक के इस आलोक में सभी सम्बन्धित विषय आलोकित हैं। और साथ ही आलोकित है शिक्षा शास्त्र का महत्त्व।

सभी स्वाध्यायशील विद्वान् इसका स्वागत करेंगे। ऐसा मुझे पूर्ण विश्वास है। युवक विद्वान् श्री उदयनाचार्य जी को इस भूरि परिश्रम साध्य कृति के लेखन के लिए बहुशः साधुवाद एवं धन्यवाद। परिशिष्ट में प्रश्नावली के संयोजन से यह छात्रों के लिए अधिक बोधगम्य एवं उपयोगी हो गया है। शेष दयामय प्रभु की अपार दया।

भवदीय

स्वामी विवेकानन्द सरस्वती

कुलपति

गुरुकुल प्रभात आश्रम

भोला झाल, मेरठ- २५०५०१

सम्मति (२)

अपने प्रिय अनुज उदयनाचार्य जी की अभिनवकृति महर्षि पाणिनि- विरचितम्, शिक्षाशास्त्रम् को देखकर अत्यन्त आह्लाद का अनुभव हो रहा है। इसे देखने से ऐसा लगता है मानो शिक्षाविषयक एक आकरग्रन्थ ही बन गया है। विद्वान लेखक ने स्थान-स्थान पर अपने कथ्य को स्पष्ट करने के लिए युक्ति व प्रमाणों का खुलकर प्रयोग किया है। प्रस्तुत ग्रन्थ के प्रारम्भ में ही लेखक ने विभिन्न शिक्षाशास्त्रों में प्रयुक्त पारिभाषिक शब्दों का व्युत्पत्ति व प्रमाणपुरः सर व्याख्यान कर दिया है

जिससे अध्येताओं को उन-उन विशिष्ट शब्दों के सङ्केतार्थ को ग्रहण करने में कोई कठिनाई न हो। जैसे कि उदात्त, अनुदात्त, स्वरित इन अधर्मों के प्रसङ्ग में स्वरित व उसके भेद-प्रभेदों को जानने के लिए इससे सम्बन्धित सूचनाएँ एक ही जगह प्राप्त की जा सकती हैं।

पारिभाषिक शब्दों के आंग्लभाषा के समानशब्दों को भी उद्धृत कर दिया गया है, जिससे उन प्राचीन शब्दों के अर्थों को आधुनिक भाषा विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में भी समझा जा सके। शब्दोत्पत्तिरहस्यनामक अध्याय में तो एक वैज्ञानिक की भाँति अपनी खोज में संलग्न लेखक सूक्ष्म छान-बीन करता हुआ प्रतीत हो रहा है। बड़े ही प्रयत्न से संगृहीत विविध चित्रों के संयोजन ने प्रकृतविषय को समझने में बहुत बड़ी भूमिका प्रस्तुत की है।

अन्तः प्रयत्न व बाह्यप्रयत्नविषयक सूक्ष्म विवेचन के द्वारा अध्येतृगण का ध्यान विशेष रूप से आकृष्ट किया है कि कौन-सा प्रयत्न वर्णोच्चारण के पहले होता है और कौन-सा पश्चात्। स्थानप्रकरण में ऋकार को लेकर ‘विशेष’ नाम से जो टिप्पणी दी है वह बहुत ही महत्त्वपूर्ण बन गयी है।

सृक्किणी, जिह्वामूलीय इत्यादि सांशयिक पदों का स्पष्ट रूप से व्याख्यान कर दिया गया है। अन्त में शिक्षाशास्त्र विषयक सबसे अधिक संदिग्ध यमविषयक चर्चा को उठाकर अधिकारी विद्वान् ने प्रकृत विषय में अपने गहन पुरुषार्थ का परिचय दिया है।

यमों के वास्तविक स्वरूप को प्रस्तुत करने में लेखक ने अपनी गम्भीर युक्तियाँ व शास्त्रीय प्रमाण देते हुए सच्चे अन्वेषक की भूमिका निभायी है। आधुनिक शोध प्रबन्ध की शैली में लिखा गया यह ग्रन्थ विद्यार्थी व अध्यापक दोनों के लिए ही उपयोगी सिद्ध होगा- ऐसी पूर्ण आशा है । लेखकस्य सर्वतो मङ्गलं कामयमानोऽयं जनः शुभाशीर्वचोभिर्वर्धापयन् विरमति ।

विदुषां वशंवदः

आचार्य, आर्ष गुरुकुल खानपुर,

नारनौल (हरि०)

सम्मति (३)

वर्णोच्चारणशिक्षा ध्वनि-विज्ञान (Phonetics) का एक अत्यन्त महत्त्व पूर्ण ग्रन्थ है। प्राचीन काल से इस शास्त्र के वेदाङ्ग के रूप में विकास के संकेत प्राप्त होते हैं। ब्राह्मण-ग्रन्थों आदि में इससे सम्बन्धित प्रभूत विवरणों से यह अनुमान अनायास प्राप्त है कि उस समय इस विषयक अनेक ग्रन्थ रहे होंगे। वर्तमान में उन सभी ग्रन्थों के समाहार के रूप में यह महनीय ग्रन्थ हमें प्राप्त है।

इस लघु-कलेवर वाले ग्रन्थ में शिक्षा शास्त्र के अत्यन्त महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक तथ्य सम्मिलित हैं। यह तथ्य किसे विस्फारितनयन करने के लिए पर्याप्त नहीं कि इससे अनुप्रेरित होकर निर्मित वर्णमाला विश्व की सबसे वैज्ञानिक वर्णमाला है। इसके प्रत्येक अक्षर की क्रमिकता तथा वर्गीकरण सुनिश्चित आधार पर अवलम्बित है। इस ग्रन्थ में वर्णों की उच्चारण पद्धति, उनके वर्गीकरण के आधार आदि विषयों पर वैज्ञानिक नियम सुस्थापित किये गए हैं।

इतने महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ पर अभी तक कोई विस्तृत भाष्य उपलब्ध नहीं था। अतः इसके गूढ रहस्यों को समझने में अत्यन्त कठिनाई होती थी। यह परम प्रसन्नता का विषय है कि श्री उदयनाचार्य जी ने अत्यन्त परिश्रमपूर्वक तत्वालोक भाष्य के अन्तर्गत इसके रहस्यों को उद्भासित करने का प्रयास किया है।

इस भाष्य की अनेक विशेषताएँ हैं। इसमें सूत्रार्थ वर्णन के साथ-साथ इसके पारिभाषिक शब्दों की एक निश्चित पहचान बताई है तथा आधुनिक ध्वनि-विज्ञान से भी तुलना की है। इससे यह जानने में सहायता मिलती है कि प्राचीन शास्त्रीय वचन आधुनिक ध्वनि-विज्ञान की प्रक्रिया से किस प्रकार सुसंगत हैं।

इस भाष्य में अपनी ओर से कोई अप्रामाणिक बात नहीं कही गई है। अपितु प्रत्येक के लिए आकर-ग्रन्थों से या आधुनिक ग्रन्थों से प्रमाण उपस्थित किये गये हैं। मुझे विश्वास है कि इसके प्रकाशन से छात्रों तथा विद्वानों में भी इस ग्रन्थ के प्रति रुचि बढ़ेगी। इस ग्रन्थ पर परिश्रमपूर्वक भाष्य लिखने के लिए मैं श्री उदयनाचार्य जी को पुनः हार्दिक साधुवाद प्रदान करता हूँ तथा आशा करता हूँ कि संस्कृत समाज में इसका भरपूर सम्मान होगा।

डॉ० सुद्युम्न आचार्य

स्नातकोत्तर संस्कृत अध्ययन एवं शोध विभाग

मु०म० टाउन पी०जी० कालेज,

बलिया (उ०प्र०) २७७००१

सम्मति (४)

पाणिनीय शिक्षा वैदिक वाङ्मय में प्रवेश हेतु आदि एवं लघुकाय ग्रन्थ है। इसका प्रयोजन शुद्ध उच्चारण तथा व्याकरण की प्रक्रिया में सहाय है, इस सबका आर्थिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्व है यथा-

दुष्टः शब्दः स्वरतो वर्णतो वा मिथ्या प्रयुक्तो न तमर्थमाह ।

स वाग्वज्रो यजमानं हिनस्ति यथेन्द्रशत्रुः स्वरतोऽपराधात् ॥

यह ग्रन्थ आरम्भिक छात्रों के लिए मात्र उच्चारण, स्थान, करण, प्रयत्न आदि बोधविषयक होने से जितना सरल प्रतीत होता है उतना कठिन अध्यापकों तथा शोधछात्रों के लिए अपने दुरुह तथा गम्भीर विषयों के कारण है।

शिक्षा शास्त्र की इस गम्भीरता को स्पष्ट तथा विस्तृतरूप से खोलकर प्रस्तुत करने की सुदीर्घ काल से अपेक्षा थी, जिसे पाणिनि महाविद्यालय रेवली के सुयोग्य स्नातक, द्विजतया (विद्याक्षेत्र में जन्म के हेतु से) हमारे अग्रज तथा ‘निगम-नीडम्’ के संस्थापक ‘श्री उदयनाचार्य’ ने बृहत् परिश्रम तथा योग्यता से पाणिनीय शिक्षाशास्त्र पर ‘शिक्षातत्त्वालोक भाष्य’ गुम्फित कर पूर्ण किया है।

अल्प बुद्धि होने के कारण साक्षात् नए छात्रों के लिए यह ग्रन्थ प्रायः अनुपयोगी होते हुए भी यह ग्रन्थ अध्यापकों तथा शोध छात्रों की प्रायः समस्त अपेक्षाओं को पूर्ण करने में निश्चितरूपेण समर्थ तथा अनेक प्रकार से उपयोगी है। संक्षेप से ‘शिक्षातत्वालोक भाष्य’ की निम्न विशेषताएँ गिनाई जा सकती हैं

१. अनेक सामान्य तथा रंगीन चित्रों के सहाय से उच्चारण विषय को स्पष्ट करना।

२. प्रायः सत्तर से अधिक ग्रन्थों के उद्धरण, निर्वचन तथा प्रमाणों से स्वभाष्य की ३. संवार तथा संवृत जैसे समान से अर्थ की प्रतीति कराने वाले शब्दों के भेद

परिपुष्टि ।

३. संवार तथा संवृत जैसे समान से अर्थ की प्रतीति कराने वाले शब्दों के सुस्पष्ट करना।

४. उच्चारण स्पष्ट करने हेतु भाषान्तर तथा ऐतिहासिक तथ्यों का प्रयोग । ५. पारिभाषिक शब्दों के निर्वाचन, ग्रन्थान्तरों द्वारा पुष्टि तथा भाषान्तर के समानान्तर शब्दों का संग्रह

६. संक्षेपविवरण, बृहद् विषय सूचनी तथा विशेषद्रष्टव्यस्थल सूचनी संयोजन।

७. अनेक प्रस्तारों द्वारा वर्णों का वर्गीकरण आदि

आचार्य वेदव्रत

अध्यक्ष, श्रुति विज्ञान आचार्यकुलम्,

छपरा, शाहबाद मारकण्डा, कुरुक्षेत्र- १३६ १३५ (हरियाणा)

Additional information
Weight 485 g
Dimensions 15 × 10 × 3 cm
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