शतपथब्राह्मणम् प्रो. हरिनारायणतिवारी
Shatapatha Brahmana by Prof. Harinarayan Tiwari (Set of 6 Volumes)

5,100.00

AUTHOR: Prof. Harinarayan Tiwari
SUBJECT: शतपथब्राह्मणम् प्रो. हरिनारायणतिवारी | Shatapatha Brahmana by Prof. Harinarayan Tiwari (Set of 6 Volumes)
CATEGORY: Brahman Granth
PAGES: 4113
LANGUAGE:  Sanskrit & Hindi
BINDING: Hardcover
VOLUMES: 6 Volumes
WEIGHT: 4860g.
Description

भूमिका

पूज्य सुधीजन !, प्रणाम।

यह माध्यन्दिनीयशतपथब्राह्मण चौदह काण्डों में है। इसमें काण्ड के अन्तर्गत प्रपाठक, प्रपाठकों के अन्तर्गत अध्याय, अध्यायों में ब्राह्मण, और ब्राह्मणों में कण्डिका है। प्रायः विश्वविद्यालयों में इसका आरम्भ का दो काण्ड पाठ्यक्रम में रक्खा गया है। उसी पर राजभाषा में आचार्यों के अनेक व्याख्यान हैं। इन्ही दो काण्डों का पाँचवा व्याख्यान सम्पूर्णानन्द-संस्कृत-विश्व विद्यालय, वाराणसी से प्रकाशित हुआ था। व्याख्या लिखने का क्रम यह रहा है कि यदि किसी ने किसी काण्ड पर व्याख्यान लिख दिया तो वाक्य बदल कर उसी को आचार्य लोग अपने नाम से छपाते रहे हैं।

यदि आप को उससे आगे समझना हो तो आप नहीं समझ सकते हैं। इस पर आचार्य सायण का भाष्य से आप इस ग्रन्थ को नहीं समझ सकते हैं। इसमें भी जो बृहदारण्यकोपनिषद् है, उस पर आचार्य शङ्कर का भाष्य है। उससे बृहदारण्यकोपनिषद् को तो समझा जा सकता है, परन्तु शेष अंश को स्पष्ट करने में आचार्य सायण का जो भाष्य है, वह आज के समय में समर्थ नहीं है। प्राचीन आचार्यों ने जो व्याख्या लिखी थी, यह मान कर कि इतना तक लोगों को पता है, उससे आगे जो पता नहीं होता था, व्याख्या करने वाले वही लिखा करते थे।

आज जब मूलार्थ का ही ज्ञान नहीं है, तब भला उस प्राचीन व्याख्यान से ग्रन्थ का अर्थ कैसे जाना जा सकता है?, अतः वर्तमान को ध्यान में रख कर मैंने इस पर भाष्यरचना का प्रयास किया है। इसी लिए इसे समझाने के लिए मैंने सम्पूर्ण ग्रन्थ पर भाष्यरचना का मन बनाया और उसे पूर्ण कर डाला। इसकी भाष्यरचना करने में मेरी जो प्रवृत्ति हुई, इसका कारण यह है कि एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय के वेदविभाग के सङ्कायप्रमुख, जिसका नाम लिखना उत्तम नहीं समझता हूँ, मुझ से मिलने जम्मू आये।

उनकी प्रथम नियुक्ति मेरे ही प्रयास से हुई थी। वे बहुत दूर से यह प्रार्थना करने आये थे कि ‘गुरु जी!, आज के समय में मैं तो क्या, सम्पूर्ण भारत में कोई भी आचार्य नहीं है, जो आचार्य-स्तर के वेद को समझा सके। हम सभी किसी तरह छाती से ठेला ठेल रहे हैं। विभाग बन्द कैसे करा दें। आप आचार्य के सभी वैदिक ग्रन्थों का व्याख्यान कर दें। अन्य कोई दिखायी नहीं देता है, जिसे मैं अनुरोध कर सकूँ’।

उस वैदिक विद्वान् की प्रार्थना को हृदय मे रख कर शाङ्खायनशाखा की भाष्यरचना पूर्ण होने के बाद मैंने शतपथब्राह्मण का काम लिया और उसे भी पूर्ण कर दिया है। अब आप सभी महानुभावों को यह ग्रन्थ समझने में कोई कष्ट नहीं होगा, यह मेरा विश्वास है।

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