शान्ति का शाश्वत मार्ग (वैदिक मानववाद)
Shanti Ka Shashwat Marg

350.00

AUTHOR: Dr. Dilip Vedalankar (डॉ. दिलीप वेदालंकर)
SUBJECT: Shanti Ka Shashwat Marg | शान्ति का शाश्वत मार्ग (वैदिक मानववाद)
CATEGORY: Vedic Literature
PAGES: 341
EDITION: 2013
LANGUAGE: Hindi
BINDING: Hard Cover
WEIGHT: 365 g.
Description

ग्रंथ शान्ति का शाश्वत मार्ग के विषय में

उन्नीसवीं एवं बीसवीं सदी में मानव के समष्टिगत कल्याण को लेकर पश्चिम में ‘मानव-वाद’ के नाम पर एक चिन्तनधारा व जीवन-दर्शन का प्रादुर्भाव वि हुआ। सैकड़ों दार्शनिकों, समाजशास्त्रियों और राजनीतिज्ञों ने मानव-गौरव की स्थापना कर, उसे सब प्रकार के अन्धविश्वासों और पूर्वाग्रहों से मुक्त कर कल्याण के पथ पर प्रवृत्त होने का सन्देश दिया। इसके लिए उन्होंने ज्ञान और नैतिकता पर बल दिया।

किसी को ईश्वर और अध्यात्म की आवश्यकता प्रतीत हुई तो अधिकांश ने इनके बिना ही मानव-कल्याण, विश्व-बन्धुत्व और विश्व शान्ति की कल्पना की। किन्तु दोनों विचारधाराओं के चिन्तक मानव जीवन को एक अविच्छिन्न इकाई के रूप में प्रस्तुत कर उसके सर्वांगीण विकास और मानव-मानव में समता की भावना उत्पन्न करने के लिए कोई सुनिश्चित एवं सुनियोजित दर्शन, समाज-व्यवस्था, शासन-व्यवस्था और आचारशास्त्र (Ethics) नहीं दे सके।

वैदिक साहित्य में लिंग भेद, जाति-भेद, वर्ग-संघर्ष और हिंसा का कोई स्थान नहीं है। वैदिक धर्म कोरा आदर्शवाद नहीं है, प्रत्युत मानव-हित एवं विश्व शांति के लिए एक सुनिश्चित दर्शन, आचारशास्त्र, समाज-व्यवस्था तथा शासन-व्यवस्था प्रस्तुत करता है। उसमें मानवोपयोगी विज्ञान, कला-कौशल और उद्योग आदि का भी सन्निवेश है।

इस ग्रन्थ में ‘वैदिक दर्शन एवं मानववाद’ नामक अध्याय में यह प्रतिपादित किया गया है कि वैदिक दर्शन सर्वान्तर्यामी परमात्मा को सब प्राणियों का पिता-माता मानता है एवं इस प्रकार भ्रातृभाव एवं विश्व-बन्धुत्व को सबल आधार प्रदान करता है। प्राणिमात्र में एक ही आत्मतत्व के दर्शन करके समदृष्टि उत्पन्न करता है। ब्रहा की तरह जीव और प्रकृति की भी वास्तविक सत्ता मानकर मानव को सांसारिक अभ्युदय से विमुख नहीं करता। कर्म सिद्धान्त में आस्था उत्पन्न कर मनुष्य को नैतिक कार्यों में प्रवृत्त करता है तथा अहिंसा आदि से दूर रखता है।

 

आज का मानव आकाश में पक्षी की तरह उड़ता है, पानी में मछली की तरह तैरता है।

आश्चर्य है कि वह धरती पर मानव बन कर चलना भूलता जा रहा है।

आज विज्ञान के नानाविध आविष्कारों ने भूमण्डल को बहुत छोटा बना दिया है और मनुष्य को चांद पर भी पहुंचा दिया है।

फिर भी वह सुखी नहीं है। क्यों ??

आज का मनुष्य अनगिनत भौतिक साधनों की उपलब्धि के कारण बहुत अधिक सम्पन्न बन चुका है, फिर भी वह सुख-शान्ति की खोज में आकुल-व्याकुल होकर मरुभूमि में मृग मरीचिका की भांति छलावे में भटक रहा है।

क्यो ???……… शान्ति का शाश्वत मार्ग

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