पुस्तक का नाम – षड्दर्शनम्
अनुवादक – स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती
मानव-मस्तिष्क जिज्ञासाओं का भंडार है। इसमें अनेक प्रश्न उठते रहते हैं तथा अनेक शङ्काओं का समाधान प्राप्त करने का प्रयत्न देखा जाता है। वेदोत्पत्ति के बाद से मनुष्यों में विभिन्न तरह की शङ्काओं और आक्षेपों ने जन्म लिया, जैसे – ईश्वर है या नहीं, किस कथन को प्रामाणिक मानें और क्यों? सृष्टि का मूल क्या है? शरीर ही आत्मा है या शरीर से भिन्न कोई तत्व? इस वेद-वाक्य का वास्तविक अभिप्राय क्या है? इस यज्ञ में यह क्रिया क्यों की जा रही है? इस तरह की कई शङ्काएँ और आक्षेप कालान्तर में होने लगे थे। उन्ही का दार्शनिक दृष्टि से समाधान ऋषि-मुनियों ने दर्शनों की रचना द्वारा किया।
न्याय, योग, वैशेषिक, सांख्य, वेदान्त और मीमांसा यह छह दर्शन आस्तिक दर्शन कहलाते हैं तथा वेदों की प्रामाणिकता को प्रमाणित करते हैं। इनसे पृथक जैन, बौद्ध, चार्वाक आदि दर्शन नास्तिक दर्शन कहलाते हैं। मध्यकालीन व्याख्याकारों के कारण उपरोक्त ६ आस्तिक दर्शनों के विषय में इस भ्रान्ति का प्रचार हुआ कि सभी दर्शनों में परस्पर विरोध है तथा मीमांसा, न्याय, सांख्य ईश्वर को नहीं मानते हैं, जिसे ऋषि दयानन्द ने दूर किया।
प्रस्तुत पुस्तक में सभी ६ दर्शनों का संकलन हैं। इस पुस्तक में सभी दर्शनों की सरल, सुगम हिन्दी अनुवाद हैं। पुस्तक के अंत में सभी सूत्रों की वर्णमाला क्रमानुसार सूची है जिससे किसी भी सूत्र का सन्दर्भ आसानी से ज्ञात किया जा सकता है।
यह एक उपयोगी ग्रन्थ है जिसे पढ़ने से षड्दर्शनों के अनेक रहस्य सरलतापूर्वक समझ आ जावेंगे।
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