प्राचीन काल से भारत वर्ष में पाकशास्त्रीय ग्रन्थ-रचना की परम्परा रही है l इन ग्रंथो में पाकविधि के साथ भोज्य वस्तुओं के गुण-धर्मं, प्रभाव व रोगविशेष में उनकी उपादेयता का वर्णन भी मिलता हैं l इस प्रकार पाकशास्त्रीय ग्रंथों में आयुर्वेदीय निर्देश भी रहते हैं l अतः प्राचीन पाकशास्त्रीय ग्रन्थ आयुर्वेद से घनिष्ठतया सम्बन्ध हैं l इनमें जहाँ उत्तमोत्तम स्वादिष्ट व्यंजनों के बनाने की विधियाँ प्रस्तुत की हैं, वहीँ स्वास्थ्य के लिए उनकी उपयोगिता का भी विधियाँ प्रस्तुत की हैं, वहीँ स्वास्थ्य के लिए पथ्य रूप में विशिष्ट प्रकार के कृतान्न (ओदन, सूप, शाक इत्यादि पके भोजन) का विवेचन भी इन ग्रन्थों में मिलता हैं l
पाकशास्त्र के ग्रंथों में राजा नल व पांडूपुत्र भीम द्वारा रचित पाकशास्त्र का उल्लेख प्राचीन साहित्य में अनेक स्थलों पर मिलता है l अनेक प्राचीन रचनाकारों ने गौरीमत व् नलमत नामक पाकशास्त्रीय ग्रंथों का भी उल्लेख भी किया हैं l भोज-रचित पाकशास्त्रीय ग्रन्थ की चर्चा भी अनेक ग्रंथों में मिलती हैं l
अजीर्णामृत-मंजरी की संस्कृत टीका में भी भीम-भोजनम् नामक एक पाकशास्त्रीय ग्रन्थ के उद्धरण मिलते हैं l भारत के कुछ हस्तलेखागारों में भीमसेन-विचरित सूपशास्त्राम् भी उपलब्ध हैं l वर्तमान में कुछ पाकशास्त्रीय ग्रन्थ प्रकाशित रूप में भी सुलभ हैं, यथा-पाकदर्पण जो राजा नल द्वारा रचित माना जाता है l १६वीं शती ई. में क्षेमशर्मा द्वारा रचित क्षेमक़ुतूहलनामक ग्रन्थ एक चर्चित पाकशास्त्रीय रचना हैं l १७वीं शती ई. में कोंकण (महाराष्ट्र) वासी पण्डित रघुनाथ सुरि द्वारा विचरित भोजन-कुतुहल नामक ग्रन्थ भी आयुर्वेद व पाकशास्त्र की मिली जुली रचना हैं l
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