न्याय दर्शन एक आध्यात्मिक पुस्तक है। इसको गौतम ऋषि जी ने लिखा है | यह एक प्राचीन ग्रन्थ है |
इस पुस्तक में कुछ सिंद्धांत दिए है जिस के आधार पर कोई भी न्याय करना सिख सकता है | यही आधार प्रमाण कहलाते है |
यही प्रमाण तर्कशक्ति के आधार पर समझे व समझाये भी जा सकते है |
न्यायदर्शन में १६ पदार्थ माने गये हैं-
- १. प्रमाण – ये मुख्य चार हैं – प्रत्यक्ष , अनुमान , उपमान एवं शब्द।
- २. प्रमेय – ये बारह हैं – आत्मा, शरीर, इन्द्रियाँ, अर्थ , बुद्धि / ज्ञान / उपलब्धि , मन, प्रवृत्ति , दोष, प्रेतभाव , फल, दुःख और उपवर्ग।
- ३. संशय
- ४. प्रयोजन
- ५. दृष्टान्त
- ६. सिद्धान्त – चार प्रकार के है : सर्वतन्त्र सिद्धान्त , प्रतितन्त्र सिद्धान्त, अधिकरण सिद्धान्त और अभुपगम सिद्धान्त।
- ७. अवयव
- ८. तर्क
- ९. निर्णय
- १० वाद
- ११ जल्प
- १२ वितण्डता
- १३. हेत्वाभास – ये पांच प्रकार के होते हैं : सव्यभिचार, विरुद्ध, प्रकरणसम, साध्यसम और कालातीत।
- १४. छल – वाक् छल , सामान्य छल और उपचार छल।
- १५. जाति
- १६. निग्रहस्थान
Reviews
There are no reviews yet.