निरुक्तवृत्ति
Niruktavritti

395.00

AUTHOR: Pro. Gyan Prakash Shastri(प्रो. ज्ञान प्रकाश शास्त्री)
SUBJECT: निरुक्तवृत्ति | Niruktavritti
CATEGORY: Vedang
PAGES: 621
EDITION: 2023
ISBN: 9788171104932
LANGUAGE: Sanskrit-Hindi
BINDING: Paperback
WEIGHT: 894 g.
Description

निरुक्त वेद का पथ प्रशस्त करता है, वेद का पथ ही सत्य का पथ है, जो उसका अध्ययन करता है, वेद उसका मित्र है। यह तथ्य निर्विवाद रूप से स्वीकार किया जाता है कि वेदव्याख्या के लिये निघण्टु की अपनी एक विशिष्ट उपयोगिता है। वेद के जितने भी प्राचीन और अर्वाचीन व्याख्याकार हुए हैं, उन सभी ने निघण्टु के महत्त्व को स्वीकार करते हुए वेदव्याख्या के प्रसङ्ग में उसको उद्धृत किया है।

प्रस्तुत पुस्तक में निरुक्त के प्रथम, द्वितीय एवं सप्तम अध्यायों का एक उच्च स्तरीय विश्लेषणात्मक विवेचन प्रस्तुत किया गया है। यह पुस्तक प्रायः सभी विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में सम्मिलित है। आशा है कि विद्यार्थी एवं जिज्ञासु जन इस पुस्तक से अवश्य लाभान्वित होंगे।

निरुक्तवृत्ति में परिशिष्ट के अन्तर्गत विषय-सूची को अकारादि क्रम से भी दिया जा रहा है, इससे अध्येताओं अपने वाञ्छित विषय तक पहुँचने में सरलता होगी।

परिमल प्रकाशन की अपनी एक विशेषता रही है कि इसने कभी गुणवत्ता से समझौता नहीं किया है। परिमल प्रकाशन के संस्थापक जोशी जी रहे हों या उनके सुपुत्र स्वयं प्रिय परिमल इस कार्य को देख रहे हों, परन्तु गुणवत्ता परिमल प्रकाशन की पहिचान रही थी और आज भी है। मुझे लम्बे अनुभव के आधार पर यह कहने में कतई संकोच नहीं है कि पूर्व की अपेक्षा यह विशेषता और भी बढ़ी है।

भगवान् से यही प्रार्थना है कि ये इसी प्रकार देववाणी संस्कृत की सेवा करते हुए उन्नति को प्राप्त हों।

परम पिता निराकार है, उनका अथाह ज्ञान भी निराकार है, जब उनकी सरस्वती शक्ति ज्ञान- समुद्र को उद्घाटित करती है, तभी बुद्धि में विद्या का आलोक होता है।’ अन्त में इस ‘मैं’ को उसी ‘एकं सत्’ के चरणों में विसर्जित करता हुआ कृतज्ञता का अनुभव कर रहा हूँ कि मुझे उसने इस महान् कार्य के लिये निमित्त बनाया। यह कार्य उसका है, अतः उसीको समर्पित है।

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