कुमकुम
Kumkum

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Description

Kumkum उसने एक कहारिन की कोख से जन्म लिया था । उसे राजाओं के जमाने के सुख मिलने लगे थे । एक विद्वान गुरु से उसे गहन गंभीर शिक्षा पाने का अवसर प्राप्त हुआ था । भगवान ने उसे रूप – रंग भी अप्सरा का – सा दिया । नारी से विरक्त बौद्ध महाप्रभु तक उस पर मुग्ध रह गए । लेकिन वह तो इतिहास का कलंक होने का कर्म – फल लेकर बड़ी हुई थी ! क्या वह अपना कलंक थो सकी ?

श्री गुरुदत्त का यह हिन्दी उपन्यास  इतिहास की एक लुका – छिपी कहानी पर से पर्दा उठाता है ।

प्रथम परिच्छेद

फाल्गुण पूर्णिमा का दिन था । नगर – भर में होली का उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा था । नगरवासी अबीर गुलाल और कुमकुम के बादल उड़ाते हुए राजपथ पर से जा रहे थे । पथ के दोनों ओर के गृहों के छज्जों , छतों एवं मुंडेरों पर खड़ी अथवा बैठी ललनाएं इस फाल्गुन की मदमाती ऋतु में प्रसन्नता में नाचते – गाते बाल , वृद्ध एवं युवकों को मंडलियों में जाते देख उल्लास अनुभव कर रही थीं । राजप्रासाद की ड्योढ़ी राजपथ पर ही थी । ड्योढ़ी के ऊपर की छूत पर राजप्रासाद में रहनेवाली बालिकाएं राजपथ पर जा रहे लोगों को होली मनाते तथा गाते – बजाते हुए निकलते देखकर रस ले रही थीं । इन बालिकाओं में एक ग्यारह बारह वर्ष की कुमारी ने अपने समीप खड़ी एक अन्य बालिका की कमर में हाथ डाले हुए कहा , ” कुमकुम , वह देखो ! ”

” कहां ? ”

“ अरी , वह देख न ! उन पुरुषों की भीड़ में एक युवती भी !

” कुमकुम ने देखा , वहां लगभग तीस वर्ष की एक युवती थी । हाथ में डफरी कुमकुम लिये नाचती – गाती पुरुषों की मण्डली में जा रही थी ।

” कोई वेश्या होगी ! ” कुमकुम ने कहा ।

कुमकुम अपनी सखी से एक वर्ष छोटी थी । सखी उजले रंग की थी और कुमकुम कुछ साँवलापन लिये थी । परन्तु नख – शिख में वह सखी से अधिक सुन्दर थी । सखी का नाम मुक्ता था , राजकुमारी मुक्ता ।

राजकुमारी ने कुमकुम से पूछ लिया , ” वेश्या ? वह क्या होती है ?

” कुमकुम ने आश्चर्य से कहा , ” तो राजकुमारी नहीं जानती कि वेश्या क्या होती है ? ”

” नहीं कुमकुम , मेरी अध्यापिका ने इस विषय में कुछ नहीं बताया । ”

इस समय नीचे राजपथ पर एक मण्डली जा रही थी , जिसमें कुछ युवक एक लड़की को , जिसने स्त्रियों के वस्त्र पहन रखे थे घेरे हुए नाच रहे थे ।

कुमकुम मे राजकुमारी की बात का उत्तर नहीं दिया और उस स्त्री की वेशभूषा में लड़के को देख हस पड़ी । उसने राजकुमारी की वेश्या संबंधी ज्ञान की वृद्धि नहीं की । राजकुमारी ने पूछ लिया , ” हसी क्यों हो ? ” स्त्री के वेश में यह पुरुष कितना कुरूप दिखाई दे रहा है ।

” इसमें कुरूपता क्या है ?

पेश स्त्रियों का बनाया है , परन्तु मूछ तो कटाई नहीं

” तो मुख पर मूछे कुरूपता का लक्षण होती हैं ?

” नहीं राजकुमारी , पुरुषों के नहीं , परन्तु एक स्त्री के मुख पर मूल अस्वाभाविक है और अस्वाभाविकता ही कुरूपता कहलाती है ।

तुम तो बहुत कुछ जानती हो ।

” यह इस कारण कि राजकुमारी की अध्यापिका अनपढ़ है । ”

” ओह ! ” राजकुमारी मुक्ता कुछ कहना चाहती थी , परन्तु इसी समय राजपथ पर एक अन्य स्वांग आता दिखाई पड़ा और राजकुमारी का ध्यान उस ओर चला गया ।

एक हाथी के बच्चे की पीठ पर लकड़ी का हौदा रखा था । उस पर चार वर्ष का एक बालक सिर पर काग़ज़ का मुकुट धारण किये और गले में टूटे – फूटे पुराने जूतों का हार पहने बैठा था । लोग उसे घेरे हुए ‘ महाराज की जय हो , भूरे महाराज की जय हो ‘ के समाघोष कर रहे थे । सभी लोगों के वस्त्र नीले – पीले और लाल रंगों से रंगे हुए थे ।

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वैद्य गुरुदत्त, एक विज्ञान के छात्र और पेशे से वैद्य होने के बाद भी उन्होंने बीसवीं शताब्दी के एक सिद्धहस्त लेखक के रूप में अपना नाम कमाया। उन्होंने लगभग दो सौ उपन्यास, संस्मरण, जीवनचरित्र आदि लिखे थे। उनकी रचनाएं भारतीय इतिहास, धर्म, दर्शन, संस्कृति, विज्ञान, राजनीति और समाजशास्त्र के क्षेत्र में अनेक उल्लेखनीय शोध-कृतियों से भी भरी हुई थीं।
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