ईश्वर विश्व के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिकों की दृष्टि में Ishwar
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AUTHOR: | Pandit Kshitishkumar Vedalankar |
SUBJECT: | ईश्वर: विश्व के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिकों की दृष्टि में | Ishwar |
CATEGORY: | Vedic Literature |
LANGUAGE: | Hindi |
EDITION: | 2018 |
PAGES: | 264 |
BINDING: | Paper Back |
WEIGHT: | 240 GM |
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प्रकाशकीय
‘वैज्ञानिकों की दृष्टि में ईश्वर’ यह श्री क्षितीश जी वेदालंकार की बहुत ही प्यारी और मार्मिक पुस्तक है। मत-वादियों ने संसार में साहित्यिक प्रचार कर रखा है कि वैज्ञानिक व विज्ञान ईश्वर की रचना को नहीं मानने। आर्यसमाज अपने जन्मकाल से इस भ्रामक विचार का, इस दुष्प्रचार का प्रतिवाद करता आया है। आचार्य महावीरप्रसाद जी द्विवेदी ने कभी कहा था कि इस युग में पं० गंगाप्रसाद उपाध्याय जी ने ‘आस्तिकवाद’ ग्रन्थ लिख कर ईश्वर की सर्वाधिक वकालत की है। इस ग्रन्थ में अनेक वैज्ञानिकों के कथन देकर इस भ्रान्ति का निवारण किया गया है कि वैज्ञानिक परमात्मा की सत्ता को नहीं मानते।
वैज्ञानिक चमत्कारों को नहीं मानते। नरक तथा स्वर्ग नाम के लोक विशेष या क्षेत्र नहीं मानते। सृष्टि के अटल अनादि नियमों व व्यवस्था को मानते हैं। सृष्टि में कहाँ गति नहीं है? इस पुस्तक के भूमिका-लेखक स्वामी सत्यप्रकाश भी एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक थे। एक प्रश्न के उत्तर में आपने एक बार कहा था, “संसार में सर्वत्र गति हो रही है। गति को देखकर मैं ईश्वर की सत्ता को वैज्ञानिक होते हुये मानता हूँ। जड़ प्रकृति
तो बिना बाहर की शक्ति के गति कर ही नहीं सकती।” जल, वायु, अग्नि ये सब जड़ हैं- गतिहीन हैं। फिर वायु चल रहा है। नदियां बह रही हैं। अग्नि की लपटें उठ रही हैं? क्यों और कैसे? इसका उत्तर एक ही है।
इन कूदते जलों में डाली है जान तूने।
जड़ में भी चेतना का फूंका है प्राण तूने ।।
यजुर्वेद का चालीसवां अध्याय ईश्वर की सत्ता व स्वरूप का बोध करवाने वाला विश्व का सबसे अनूठा दस्तावेज है। वेद की ऋचा बताती है-प्रभु दूर से दूर है। वह निकट से निकट है। वह सारे जगत् को गति देता है। स्वयं गति नहीं करता। वह कहीं न आता है और न जाता है। जो सर्वत्र है वह कहां जायेगा? वह सर्वत्र कहां आयेगा।
वैज्ञानिकों का ईश्वर का स्वरूप वही है जो वैदिक धर्म को मान्य है। अनादि काल से लेकर आज पर्यन्त सब ऋषि-मुनि-महात्मा उसका ही गुण-कीर्तन करते आ रहे हैं। क्षितीश जी लिखित इस कृति की बहुत माँग थी। सभा ने अपने एक निर्माता स्वामी सत्यप्रकाश जी द्वारा प्रशंसित इस पुस्तक के पुनः प्रकाशन का अपना दायित्व निभाया है
Weight | 240 g |
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