गोरक्ष संहिता
Goraksh Samhita

Original price was: ₹50.00.Current price is: ₹45.00.

AUTHOR: Dr. Chaman Lal Gautam
SUBJECT: Goraksh Samhita | गोरक्ष संहिता
CATEGORY: Yoga Book
LANGUAGE: Hindi
EDITION: 2023
PAGES: 148
PACKING: Paper Back
WEIGHT: 105 g.
Description

भूमिका

महायोगी गोरक्षनाथ का नाम कोई अपरिचित नहीं है। वे योगविद्या के परमवेत्ता एवं आचार्य थे। मुमुक्षु जनों के समुदाय में उन्हें गुरु गोरखनाथ के नाम से जाना जाता है। गोपीचन्द्र भर्तृहरि के प्रचलित आख्यान में इनका नाम आने से इनकी प्रसिद्धि साधारण लोगों में भी अत्यन्त आदर के साथ है।

गोरक्षनाथ के गुरु हठयोग के आचार्य मत्स्येन्द्रनाथ अपने माने जाते हैं। गोरक्षनाथ ने योगविद्या इन्हीं से सीखी थी और इन्हीं के श्रीमुख से भगवान् श्री आदिनाथ शिवजी के मुखारविन्द से प्रकट हुए योग-विषयक उपदेशों को एकत्र करके मुमुक्षु जनों के उपयोगार्थ उनमें से जो सौ श्रेष्ठ एवं हितकर श्लोकों को छाँट कर सार रूप में प्रकट कर दिया।

यद्यपि भगवान् शंकर द्वारा कहे हुए श्लोक इतने अधिक थे कि जिनका याद रखना साधारण जिज्ञासुओं के लिए कठिन ही नहीं असंभव भी था और उनके याद न रखने से याग-साधन में ऋनिनाड़यों का होना स्वाभाविक ही था। क्योंकि योग ऐसा विषय नहीं है जो केवल अनुमान के आधार पर ही कार्यरूप में परिणित किया जा सके अथवा सुनी-सुनाई याददाश्त पर निर्भर रह कर उसका साधन किया जा सके। इसलिए उसका प्रामाणिक रूप से लिपिबद्ध किया जाना आवश्यक था और सम्भवतः इसी आवश्यकता को अनुभव करके हमारे प्राचीन योगीन्द्रजनों ने इसमें निज अनुभव के आधार पर कुछ कमोवेशी भी की है।

हमोर उक्त कथन का प्रमाण इसी से मिलता है कि योग के अनेक ग्रन्थों में कहीं-कहीं श्लोकों में समानता दिखाई देती है, परन्तु यदि ध्यान से देखें तो उनमें कुछ परिवर्तन की झलक भी मिलती है, जिसके दो ही कारण हो सकते हैं- (१) स्मृति के आधार पर उनका संकलन होना, और (२) अनुभव के आधार पर जान-बूझकर उनके शब्दों और भावों में हेर-फेर कर देना।

अधिकांश योग ग्रन्थों में भगवान् आदिनाथ के उन्हीं उपदेशों का संकलन मिलता है जो उन्होंने पार्वतीजी के प्रति कहे थे। इन्हीं आदिनाथ से नाथ सम्प्रदाय का प्रारम्भ हुआ और मत्स्य देहधारी मत्स्येन्द्रनाथ उसे सुनकर ही परम सिद्ध एवं योगी हो गए।

मत्स्येन्द्रनाथ के पश्चात् उनके शिष्य गोरक्षनाथ भी योग के आचार्य हुए हैं, उन्होंने अपने गुरुदेव से प्राप्त असंख्य श्लोकों में से दो सौ श्लोकों का चयन कर अपने संग्रह को ‘गोरक्षसंहिता’ नाम से प्रकट कर दिया।

यह संहिता बहुत समय से प्राप्य नहीं है, इसलिए हमने इसे बहुत खोज के अनन्तर प्राप्त कर सुलभ हिन्दी भाषा में प्रस्तुत करने की चेष्टा की है। पाठकों को इसके अध्ययन में अधिक सुगमता और सुबोधता रहे, इस उद्देश्य से विस्तृत व्याख्या संयुक्त की है, जो कि जिज्ञासु पुरुषों के लिए अत्यन्त हितकर सिद्ध होगी। इसमें कविराज श्री दाऊदयाल गुप्त से जो सहयोग हमें मिला है, वह अवश्य ही प्रशंसनीय है।

हमें विश्वास है कि हमारे इस प्रयास से सभी प्रकार के पाठक लाभ उठायेंगे और इसी से हमारे प्रयत्न की सफलता होगी।

-डॉ० चमनलाल गौतम

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