भारतवर्ष में विशाल हिन्दू समाज , जिसके पाँव दृढ़ता से अपनी प्राचीन संस्कृति और धर्म में जमे हैं , काल की विपरीत गतियों का सफलतापूर्वक सामना करती चली आती थी । भारतवर्ष पर गिद्ध की – सी दृष्टि रखने वाले विदेशीय , हिन्दू समाज के पाँव उखाड़ने में यत्नशील हो गये । एक दूषित संयोग इस्लाम , ईसाईयत और अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त प्रास्था – विहीन हिन्दुस्तानी घटकों का बन गया और इस संयोग का विरोध करने के लिए आर्य समाज हिन्दू समाज की कायाकल्प करने की चेष्टा करने लगी ।
यह है इस पुस्तक का विषय | इस समय भी भारत देश में दो प्रबल विचार तरंगों की टक्कर हो रही है । इस टक्कर की यह कहानी है । से यह दो लहरों की टक्कर उपन्यास है । ऐतिहासिक पात्रों के विषय में जो कुछ लिखा गया है , वह उनके प्रकाशित विवरणों से ही लिया गया है । अपनी ओर से पूर्ण प्रयत्न किया गया है कि वस्तु स्थिति का ठीक – ठीक चित्रण किया जाये ।
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