प्रकाशकीय
प्रस्तुत पुस्तक को पाठकों के सम्मुख उपस्थित करते हुए हमें जहाँ एक ओर हर्ष हो रहा है, वहाँ खेद भी हर्ष इसलिए कि एक महत्त्वपूर्ण कृति पाठकों को प्राप्त हो रही है। खेद इसलिए कि पुस्तक के प्रकाशित होते-होते इसके विद्वान लेखक महायात्रा पर चले गए। उनकी बड़ी इच्छा थी कि पुस्तक जल्दी प्रकाशित हो जाए। अपनी मृत्यु के तीन दिन पूर्व उन्होंने हमें सूचित किया था कि यदि पुस्तक के छपे फर्में हम उन्हें भिजवा दें तो वह इसकी भूमिका लिख दें। पर काल की गति को कौन जानता है! दूसरे ही दिन उनको ब्रांको निमोनिया का हमला हुआ और वह एकाएक चले गए!
पुस्तक के लेखक से हिन्दी के पाठक भलीभांति परिचित हैं। वह न केवल अच्छे लेखक तथा पत्रकार थे, अपितु भारत के स्वाधीनता संग्राम के एक प्रमुख सेनानी भी रहे थे। आजादी के लिए जितने आन्दोलन हुए, उन सबमें उन्होंने सक्रिय भाग लिया और कई बार जेल गए।
इतना ही नहीं, अपनी वाणी, लेखनी तथा दैनिक पत्र के द्वारा आजादी के संदेश के व्यापक प्रसार में भी उन्होंने सहायता दी। हमारे लिए निस्संदेह यह बड़े सौभाग्य की बात है कि लेखक ने परिश्रमपूर्वक
पुस्तक की दूसरी विशेषता इसकी प्रामाणिकता है। जो कुछ सामग्री लेखक ने इसमें दी है, उसके चुनाव और वर्णन में उन्होंने एक इतिहासज्ञ की दृष्टि रखी है। अतः यह पुस्तक स्थायी महत्त्व की है।
हमें आशा है, पाठक इस पुस्तक को उपयोगी पायेंगे और इसके प्रचार एवं प्रसार में सहायक होंगे।
– मंत्री
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