समय की पुकार : साहस का हथियार
इस पुस्तक के सजग पाठकगण। जैसा कि पुस्तक के नाम से ही आप जान गए होंगे कि इसको पढ़ने से हमारा जीवन यानि आदतें बदल जाएँगी। शर्त है, ध्यान पूर्वक पढ़ना। केवल पढ़ना ही नहीं, धारण भी करना होगा। ये सभी के लिए सत्य हैं और सार्वभौमिक यानि यूनिवर्सल हैं। विशेष रूप से अपनी युवापीढ़ी का उद्बोधन करते हुए मैं कहना चाहूंगी कि इन सब को धारण करने के लिए विशेष साहस की आवश्यकता है। क्योंकि अपने स्वाभाविक (नेचुरल) गुणों को बदलना आसान काम नहीं है, इसके लिए विशेष साहस चाहिये।
युवाओ ! आज की परिस्थितियों में जब समाज और राष्ट्र अनेक प्रकार की समस्याओं से घिरा हुआ है। उस घेरे को तोड़ने के लिए प्रबल साहस की आवश्यकता है। यह धर्म और मनुष्यता का वास्तविक लक्षण भी है। हम जिस धर्म को धारण करने के लिए तत्पर हैं उसमें विघ्न बाधाएँ डालने वालों के प्रति भी हमें सावधान रहना ही होगा। कमर कस कर हर पल, हर क्षण सजग बनना है। अपने प्राणों की परवाह न करते हुए मानव धर्म एवं राष्ट्र की सुरक्षा करना अत्यंत आवश्यक है। यदि हम पुनः राष्ट्रीय और मानसिक परतंत्रता में जकड़ गए तो बच पाना मुश्किल है।
तैयार हो जाइए सत्य को ग्रहण करने और असत्य के त्याग के लिए। कोई भी गलत काम, बुराई, अन्याय और पक्षपात असत्य ही है। इसे छोड़ने और छुड़वाने के लिए सदैव तैयार रहें। अब सोने और अलसाने का समय नहीं है। क्रान्तिकारी दयानंद, शहीद भगत सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, रानी लक्ष्मीबाई आदि अनेक शहीदों की कुर्बानियों को याद करते हुए साहसपूर्वक तैयार हो जाएँ। मनुष्यता के इन सब धर्मों के साथ साहस को भरना अत्यावश्यक हो गया है।
Reviews
There are no reviews yet.