प्राक्कथन
जैसे जैसे विज्ञान व अभियान्त्रिकी की दिशा में आगे बढ़ता गया , इस सत्य की प्रमुखता बढ़ती गयी । तकनीकी तथा प्रबन्धन कार्य से सेवा निवृत्ति के बाद वेदाध्ययन की ओर आगे बढ़ा तथा इस विचार को मूर्त रूप पाया ।
इस पुस्तक में एक चिन्तन प्रस्तुत किया गया है जिसमें चारों वेदों में अथर्ववेद को चुना , वहीं इस विषय का आधुनिक वैज्ञानिक युग लगभग 150 वर्ष पूर्व यूरोप तथा अमेरिका से प्रारम्भ होकर रूस , जापान , चीन , भारत तथा अन्य देशों में विकिसित हुआ । इस पुस्तक को 9 अध्यायों में विभक्त किया गया है ।
भूमिका नामक प्रथम अध्याय में वेदों का संक्षिप्त परिचय देते हुए वैदिक ज्ञान व विद्युत् विज्ञान के बीच संबन्ध स्थापित करने पर चिन्तन प्रस्तुत किया है ।
अध्याय 2 से अध्याय 9 पर्यन्त अथर्ववेद के द्वितीय काण्ड के चयनित सूक्तों में से क्रमशः सूक्त संख्या 6 से सूक्त संख्या 26 तक 21 सूक्त एवं 126 मन्त्रों के भाष्य को लिया है । इन मन्त्रों के अग्नि , भैषज्यायुर्वनस्पतयो , यक्ष्मनाशनो वनस्पतिः , द्यावापृथिव्यादि , प्राणापानायूंषि , वायु , सूर्य , चन्द्रमा , आप आदि देवताओं की तथा शौनक अथर्वा भृग्वगिरा भरद्वाज ब्रह्मा आदि ऋषियों की तथा इन मन्त्रों के पदों की नये रूप में व्यञ्जनात्मक व्याख्या करते हुए विद्युत् विज्ञान के आयामों के साथ संबन्ध स्थापित करने का प्रयास किया है ।
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