दो शब्द
प्रस्तुत पुस्तक अध्यात्म मार्ग पर चलने वाले साधकों के साथ जन-सामान्य के लिए भी उपयोगी है। इसके लेखक वैदिक मर्मज्ञ दर्शनाचार्य मुनिश्री सत्यजित् जी हैं। हर चिंतन का अपना रूप है व वह सिद्धांतों की गहनता और शुद्ध ज्ञान का परिचायक है। आध्यात्मिक क्षेत्र में ऋषि मनीषियों की अनेक धाराएँ बह रही हैं किंतु यह धारा विचारक को कसौटी पर खरा-खरा उतरने का मार्ग प्रशस्त करती है। एक दो शब्द व वाक्य भी प्रेरणादायी हैं, अमूल्य मोती हैं। किसी भी मोती को अपनाया जाए, चिंतन का हर मोती अत्यंत धवल है। वह मन, मस्तिष्क व विचारों को भी धवल करने का स्वर्णिम अवसर हृदयङ्गम कराता है।
आज के भौतिकवादी युग में साँस लेना कठिन हो रहा है। उसकी चकाचौंध में प्रत्येक मानव उसका ग्रास बन रहा है। आध्यात्मिक चिंतन की ओर किसी-किसी का ध्यान जाता है। ऐसी विषम स्थिति में प्रस्तुत पुस्तक साधक का मार्ग प्रशस्त करने में अत्यंत सहायक सिद्ध होगी। जिस ईश्वर ने इस संसार में भेजा है उसके प्रति हमारा क्या कर्तव्य है ? ईश्वर हमारे पास है, उसको प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण उपाय, योग, ध्यान, धारणा, समाधि है।
जीवन अमूल्य है, उसको अच्छे आचार-विचार से संवारना आवश्यक है। कुछ क्षण अनुपम होते हैं जो जीवन के मोड़ को प्रेरित करते हैं। महर्षि दयानन्द, गुरुदत्त विद्यार्थी, स्वामी श्रद्धानन्दादि सदृश अनेक महापुरुष प्रेरक के रूप में इस संसार में हुए हैं। संसार चक्र के साथ आध्यात्मिक चिंतन चक्र आवश्यक है। सबके जीवन का कल्याण हो इस हेतु उन क्षणों को पहचानना है। केवल पहचानना ही नहीं वरन् उस अमूल्य चिंतन को अपनी जीवनचर्या में आत्मसात कर लेना है।
पाठकों के समक्ष सम्पूर्ण ‘आध्यात्मिक चिंतन के क्षण’ पुस्तक रूप में प्रस्तुत हैं। यह पूर्णतया मन मस्तिष्क का कायाकल्प करने में सक्षम होगी। आध्यात्मिक जगत् की उन्नति में यह कृति अनुपम देन है। यह ईश्वर के प्रति लगन लौ का कार्य करेगी। जीवन के लिए इसके पठन-पाठन हेतु सभी का साधुवाद ।
-देवमुनि
निवेदन
मुनि सत्यजित् जी रचित ग्रंथ ‘आध्यात्मिक चिंतन के क्षण‘ वैदिक धर्म पर एकाग्र एक अद्भुत दस्तावेज़ है। मुनिश्री की लेखमालाओं को परोपकारी पाक्षिक में पढ़ते हुए सदैव से मन में यह भावना थी कि इन्हें एक पुस्तकाकार में सुधी पाठकों तक पहुँचना चाहिए। मेरी भावना का सम्मान करते हुए मुनिश्री ने अनुमति दी और ‘आध्यात्मिक चिंतन के क्षण’ आपके कर कमलों में सादर प्रेषित है।
पूरा संसार अलग-अलग मान्यताओं के अनुसरण में व्यस्त है लेकिन मनुष्य को सदैव से ऐसे प्रकाश की आवश्यकता महसूस होती आई है जब वह हमारी वैदिक परंपरा का अनुगामी बनते हुए अपनी सोच विकसित कर सके। मुनि सत्यजित् जी की वाणी, चिंतन और लेखन बहुत विराट दृष्टिकोण रखता है। इसीलिए धर्मों, मज़हबों, मान्यताओं और धर्म के नाम पर होती कटुताओं से मुक्ति पाने के लिए ‘आध्यात्मिक चिंतन के क्षण’ निश्चित ही एक प्रकाश स्तंभ का कार्य करेगी।
यह बताना प्रासंगिक होगा कि मुनि सत्यजित् जी वानप्रस्थी विद्वान्, तपस्वी, गूढ़ गंभीर चिंतक, दार्शनिक और यशकीर्ति से परे परम साधक हैं।
आशा है आप सभी को यह प्रकाशन वैदिक धर्म के प्रति एक नया दृष्टिकोण देने में सफल रहेगा।
बुद्धि का माहात्म्य उसके ज्ञान पर निर्भर करता है। ज्ञान है तो बुद्धि का बहुत लाभ मिलता है, विपरीत ज्ञान है तो इसी बुद्धि से बहुत हानि उठानी पड़ती है। बुद्धि में ज्ञान की प्राप्ति भी इसी बुद्धि के समुचित उपयोग पर निर्भर करती है। बुद्धि का समुचित उपयोग कैसे किया जाता है, यह भी सीखना होता है, जानना होता है। वैदिक-दर्शन हमें यह सिखाते हैं, जनाते हैं।
बुद्धि का अध्यात्म में सदुपयोग लेने के लिए ईश्वर प्रदत्त बुद्धि में हमारे द्वारा किये गये पूर्व संगृहीत हर उस ज्ञान व विचार को हमें निकालना या संशोधित करना होता है, जो अध्यात्म के लिए बाधक है। इसके लिए हमें स्वयं को सज्जित रखना होता है, उद्यत रखना होता है, सत्य-असत्य का विवेक करना होता है। पूर्व के प्राप्त ज्ञान व विचारों को भी बार-बार सत्यासत्य की कसौटी पर कसकर ही लिया था, किन्तु यह आवश्यक नहीं होता कि उस समय की कसौटी ठीक ही रही हो। आध्यात्मिक व्यक्ति को न केवल अपने पूर्व ज्ञान व विचारों को पुनः-पुनः कसौटी पर कसना होता है, अपितु उन कसौटियों को भी पुनः-पुनः कसना होता है।
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