निवेदन
श्री मद्भगवद्गीता और श्री कृष्ण को लेकर समाज में सर्वाधिक भ्रांतियों का प्रचार है। न तो विशुद्ध रूप से भगवद्गीता का अर्थ हम जानते हैं और न ही शुद्ध कृष्ण चरित्र हमे पता है। जब भी भगवद्गीता का नाम आता है तो कई अवधारणाएं स्वतः ही हमारे मन में पैदा हो जाती हैं जैसे भगवद्गीता तो बुढ़ापे में पढ़ने की चीज है भगवद्गीता को पढ़कर तो व्यक्ति साधु संत महात्मा बन जाता है, भगवद्गीता तो हिन्दू लोगों की ही पुस्तक है, भगवद्गीता का सार है तुम क्या लाए थे? क्या ले जाओगे? क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो? जो हो रहा है अच्छा हो रहा है जो होगा वह भी अच्छा होगा आदि आदि।
किन्तु सत्य तो यह है इनमे से एक भी बात सत्य नहीं है। परन्तु यह भी सच है की यही एक बात हर व्यक्ति के मन में बड़ी अच्छी प्रकार से बैठी हुई है, जब भी ऐसे विचार हमारे सामने आएं तो हमें तर्क पूर्वक यह विचार करना चाहिए की क्या अर्जुन इस उपदेश को श्री कृष्ण से सुनकर बाबा, साधु, सन्यासी, अथवा संत बना? या फिर अर्जुन इस उपदेश को सुनकर राजा बना? सत्य तो यह है की श्री कृष्ण ने यह भगवद्गीता का उपदेश उसे नहीं दिया जिसे भविष्य में साधु बनना था बल्कि उन्होंने यह उपदेश उसे दिया जिसे राजा बनना था।
इससे आगे मैं कुछ भी इस बारे में लिखूं उससे अच्छा यह होगा की आप ही विचार करो आपको आपका उत्तर स्वतः ही मिल जायेगा। ऐसी जितनी भी भ्रांतियां आपके मन में उठती हैं उन सबका उत्तर आपके पास ही होता है बस आवश्यकता होती है आँखे खोल कर उस पर ध्यान लगाने की।
अब रही भगवद्गीता के वर्तमान समाज में प्रचारित सार की बात तो आप बताओ क्या श्री कृष्ण ने कहीं भी सम्पूर्ण भगवद्गीता में अर्जुन से कहा की हे अर्जुन; तू क्या लाया था….. क्या ले जायेगा…… क्यों व्यर्थ की चिंता करता है….. जो हो रहा है सही हो रहा है… क्यों युद्ध लड़ता है जो यह अधर्मी कर रहे हैं अच्छा कर रहे हैं तू होने दे। नहीं उल्टा योगेश्वर श्री कृष्ण ने अर्जुन के युद्ध न करने वाले निर्णय का भारी विरोध किया और वे बोले-
क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते ।
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्त्वोत्तिष्ठ परन्तप ।।
(भगवद्गीता अध्याय 2 श्लोक 3)
हे पार्थ। अपने भीतर इस प्रकार की नपुंसकता का भाव लाना तुम्हें शोभा नहीं देता। हे शत्रु विजेता। हृदय की तुच्छ दुर्बलता का त्याग करो और युद्ध के लिए तैयार हो जाओ।
आगे भगवान् श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं-
हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्।
तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः ।।
(भगवद्गीता अध्याय 2 श्लोक 37)
अगर युद्ध में तू मारा जायगा तो तुझे स्वर्ग की प्राप्ति होगी और अगर युद्ध में तू जीत जायगा तो पृथ्वी का राज्य भोगेगा। अतः हे कुन्तीनन्दन। तू युद्ध के लिये निश्चय करके खड़ा हो जा।
अब क्या इस से अधिक कोई प्रमाण देने की आवश्यकता है? यदि हम इन विषयों पर मनन करते, चिंतन करते तो कभी भी समाज में प्रचारित हो रहे इस झूठे सार को ना तो स्वयं प्रचारित करते और न ही इसका प्रचार होने देते। और रही बात भगवद्गीता ज्ञान को बुढ़ापे में प्राप्त करने की तो जब यह ज्ञान श्री कृष्ण ने अर्जुन को दिया तो उस समय अर्जुन बूढ़ा नहीं जवान ही था।
वास्तविक बात तो यह है इस प्रकार के भ्रान्ति जनक समाज में केवल इसलिए प्रच. ारित किए जाते हैं ताकि लोगों को सही बात से दूर रखा जा सके क्योंकि लोग अगर सही बात जान लेंगे तो झूठ प्रपंच अधर्म की दुकानों पे ताला लग जाएगा इसलिए वे ऐसे षड्यंत्र करके समाज को दिशाहीन करते ही रहते हैं।
यह तो हुई भगवद्गीता की बात अब यदि भगवद्गीता का उपदेश सुनाने वाले महातेजस्वी योगेश्वर श्री कृष्ण की बात करें तो उनके साथ भी समाज ने कम अन्याय नहीं किया है। जिस श्री कृष्ण ने भगवद्गीता जी का पवित्र उपदेश देकर मानव जाति का कल्याण किया उस महान् चरित्र के धनी को भी उनके ही तथाकथित पूजने वालों ने इतना बदनाम किया जिसकी कोई सीमा नहीं। आप विचार करें।
योगेश्वर भगवान् श्री कृष्ण स्वयं भगवद्गीता में कहते हैं-
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।
(भगवद्गीता अध्याय 2 श्लोक 7)
इस श्लोक का पूर्ण अनुवाद
कृष्ण कहते हैं मैं इस धरती पर धर्म की स्थापना करने आया हूँ।
परन्तु दुर्भाग्य हम सबका की हमने कृष्ण की नहीं सुनी हम सब कृष्ण को प्रतिदिन पूजते हैं, कृष्ण को मानते हैं, पर हम कृष्ण की नहीं मानते यह कड़वा है पर सच है क्योंकि हम यदि कृष्ण की मानते होते तो कभी भी हम अपने भजन में श्री कृष्ण का अपमान करते हुए यह न गाते की “मनिहारी का वेश बनाया छलिया का वेश बनाया श्याम चूड़ी बेचने आया।” इस गंदे गाने को गाकर हम सोचते हैं कि हम श्री कृष्ण जी के भक्त हैं, पर सच तो यह है कि हम भक्त नहीं कम्बख्त है,
क्योंकि कृष्ण कह रहें हैं मैं धर्म बचाने आया और भक्त कहतें हैं वो कृष्ण चूड़ी बेचने आया अब हम सच किसको माने कृष्ण सच बोल रहें हैं या भक्त क्योंकि मैंने तो किसी भक्त को मंदिर में यह गाते कभी नहीं सुना की “योद्धा का वेश बनाया कृष्ण धर्म बचाने आया” आपने सुना हो तो मुझे जरूर बताओ।
प्रिय पाठकों कृष्ण के यह तथाकथित भक्त यहीं नहीं रुकते यह समाज के किसी भी व्यक्ति को बिना उसकी पृष्ट्भूमि की जांच किये उसको कृष्ण के कपड़े पहनाते हैं और उस कृष्ण को सड़को पे नचाते हैं मंचों पे उसकी कमर में मोर पंख बाँध बाँध कर साथ में ठुमका लगाते हैं और ऐसे ही अपने आराध्यों का मजाक बड़ी धूम धाम से उड़ाते हैं। यानि जो श्री कृष्ण जी का चरित्र था ही नहीं उसी का प्रचार कर करके उन्हें बदनाम कर दिया जाता है
आप स्वयं विचार करें क्या आपने आज तक किसी भी धार्मिक आयोजन में श्री कृष्ण और अर्जुन के बीच हुई ज्ञान की चर्चा का मंचन देखा जिसमे किसी समाज के व्यक्ति ने अजुन का वेश धारण किया हो और किसी ने कृष्ण का वेश धारण किया हो और दोनों मंच पे भगवद्गीता संवाद कर रहे हों? ऐसा आपने कभी नहीं देखा होगा पर हमेशा देखा होगा एक राधा और कृष्ण बने जोड़े को फूहड़ता से मंच पे नाचते हुए। यह सब क्या हो रहा है?
असत्य का प्रचार हो रहा है जो वास्तव में कभी हुआ ही नहीं उसका खूब प्रचार होता है और जो सच में इतिहास में हुआ है उसका कोई प्रचार नहीं होता। इसलिए मैंने इस समस्या को लेकर बहुत चिंतन किया की कैसे हम इससे उभरें इसका समाधान कैसे करे पर असत्य की दीवार इतनी मजबूत है की इसको हम तोड़े तो स्वयं ही टूट जाएंगे इसलिए मैंने विचार किया
हम सत्य की दीवार को पूण मजबूती के साथ इतना ऊँचा खड़ा कर देंगे की असत्य बोना रह जाए बस उसी विचार को मूर्तस्वरूप देने हेतु मैंने ईश्वर को स्मरण करते हुए उनकी प्रेरणा से भगवद्गीता के सरल सार पर कार्य प्रारम्भ किया जिससे इस भगवद्गीता रूपी अमृत का पान प्रत्येक मानव कर पाए और विशेषरूप से हर नौजवान इस अमृत का स्वाद कम से कम चखे तो सही।
अब यह मेहनत आपके हाथ में है आप इसका लाभ लीजिये और अपनी समस्याओं का समाधान इससे प्राप्त कीजिये। साथ ही मैं आप सभी से यह अपेक्षा भी करता हूँ की हम सब श्री कृष्ण तथा उनकी भगवद्गीता के सम्बन्ध में प्रचारित हो रही भ्रांतियों को मिलकर इस समाज से दूर करेंगे।
धन्यवाद।
आपका
गौतम खट्टर
Reviews
There are no reviews yet.