अथर्ववेद
Atharvaveda

1,825.00

  • By :Kshemkaran Das Trivedi
  • Subject :Atharveda
  • Packing :2 Volumes
  • Binding :Hard Cover

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Description

वेद चतुष्टय में अथर्ववेद अन्तिम है। परमात्मा प्रदत्त इस ज्ञान का साक्षात्कार सृष्टि के आरम्भ में महर्षि अङ्गिरा ने किया था। मनुष्योपयोगी ऐसी कौन-सी विद्या है जिससे सम्बन्धित मन्त्र इसमें न हो। लघु कीट पर्यन्त से परमात्मा पर्यन्त विचारों का इन मन्त्रों में सम्यक् विवेचन हुआ है।

केनसूक्त, उच्छिष्टसूक्त, स्कम्भसूक्त, पुरुषसूक्त जैसे अथर्ववेद में आये विभिन्न सूक्त विश्वाधार परमात्मा की दिव्य सत्ता का चित्ताकर्षक तथा यत्र-तत्र काव्यात्मक शैली में वर्णन जपते हैं। जीवात्मा, मन, प्राण, शरीर तथा तद्गत इन्द्रियों और मानव के शरीरान्तर्गत विभिन्न अंग-प्रत्यंगों का तथ्यात्मक विवरण भी इस वेद में है।

जहाँ तक लौकिक विद्याओं का सम्बन्ध है, अथर्ववेद में औषधि विज्ञान जैसे – “आपो अग्रं दिव्या ओषधयः”- अथर्ववेद 8.7.3 इत्यादि।

प्राण विज्ञान – “प्राण मा बिभेः”- अथर्ववेद 2.15.1-6

मनोविज्ञान – इसमें अथर्ववेद के 6ठे काण्ड जिसमें दुःस्वपनों के निवारण को लेकर एक सूक्त 6.46 में है। जैसे – दुःष्वप्न्यं सर्वं द्विषते स नयामसि।

राजधर्म या राजशास्त्र – अथर्ववेद में चौथे काण्ड का आठवां सूक्त राजधर्म विषयक है। जैसे – “व्याघ्रो अधिवैयाघ्रे विक्रमस्व दिशो महीः।

विशस्त्वा सर्वा वाञ्छन्त्वापो दिव्याः पयस्वतीः”।। -अथर्ववेद 4.8.4

इसी प्रकार अन्य सूक्त भी राजधर्म का प्रतिपादन करते हैं।

धातु-विज्ञान – अथर्ववेद के अनेको मन्त्रों में कई प्रकार की धातुओं के उल्लेख है, जैसे स्वर्ण-रजत, लौह, ताम्र, कांस्यादि। अथर्ववेद के 19वें मण्डल और 26वें सूक्त में स्वर्ण के धारण करने का उल्लेख है।

मणिविज्ञान – इस वेद के 19वें काण्ड का 28वां सूक्त मणियों के लाभों का संकेत करता है –

“इमं बध्नामि ते मणिं दीर्घायुत्वाय तेजसे”- अथर्ववेद 19.28.9

कृषि-विज्ञान – अन्न प्राप्ति हेतू कृषि-कर्म अत्यन्त आवश्यक है, अथर्ववेद के तृतीय काण्ड के सप्तदश सूक्त में कृषि विद्या का विस्तार से उल्लेख हुआ है।

इसी प्रकार 4.21.6 में गौ पालन का उपदेश है।

खगोल विज्ञान – अथर्ववेद में नक्षत्रों के सम्बन्ध में अनेको सूक्त प्राप्त होते है, जिनके द्वारा ज्योतिषीय काल गणना का सम्पादन होता है। जैसे – “यानि नक्षत्राणि दिव्यन्तरिक्षे अप्सु भूमौ” – अथर्ववेद 19.8.1 इसी तरह अनेको विद्याएँ अथर्ववेद में मूल रूपेण सङ्कलित है।

प्रस्तुत भाष्य दो भागों में क्षेमकरणदास त्रिवेदी जी द्वारा रचित है। यह भाष्य सरल एवं रोचकता से पूर्ण है। भाष्यकार ने उन स्थलों के युक्ति-युक्त अर्थ किये हैं जो अन्य भाष्यकारों के कारण अंधविश्वास से सम्बन्धित प्रतीत होते थे। प्रत्येक मन्त्रों का भावार्थ सारयुक्त सरल हैं। अथर्ववेद के ज्ञान-विज्ञान का लाभ प्राप्त करने के लिए इस भाष्य को अवश्य प्राप्त कर पढ़ें।
इस वेद में ज्ञान, कर्म, उपासना का सम्मिश्रण है। इसमें जहाँ प्राकृतिक रहस्यों का उद्घाटन है, वहीं गूढ आध्यात्मिक रहस्यों का भी विवेचन है। अथर्ववेद जीवन संग्राम में सफलता प्राप्त करने के उपाय बताता है। इस वेद में गहन मनोविज्ञान है। राष्ट्र और विश्व में किस प्रकार से शान्ति रह सकती है, उन उपायों का वर्णन है। इस वेद में नक्षत्र-विद्या, गणित-विद्या, विष-चिकित्सा, जन्तु-विज्ञान, शस्त्र-विद्या, शिल्प-विद्या, धातु-विज्ञान, स्वपन-विज्ञान, अर्थनीति आदि अनेकों विद्याओं का प्रकाश है।

इस वेद पर प्रसिद्ध पं.क्षेमकरणदास जी त्रिवेदी द्वारा रचित भाष्य है। इसमें पदक्रम, पदार्थ और अन्वय सहित आर्यभाषा में अर्थ किया गया है। अर्थ को सरल और रोचक रखा गया है। स्पष्टता और संक्षेप के ध्यान से भाष्य का क्रम यह रक्खा है –
1 देवता, छन्द, उपदेश।
2 मूलमन्त्र – स्वरसहित।
3 पदपाठ – स्वरसहित।
4 सान्वय भावार्थ।
5 भाषार्थ।
6 आवश्यक टिप्पणी, संहिता पाठान्तर, अनुरूप विषय और वेदों में मन्त्र का पता आदि विवरण।
7 शब्दार्थ व्याकरणादि प्रक्रिया-व्याकरण, निघण्टु, निरूक्त, पर्याय आदि।

इस तरह ये चारों वेदों का समुच्चय है। आशा है कि आप सब इस वेद समुच्चय को मंगवाकर, अध्ययन और मनन से अपने जीवन में उन्नति करेंगे।

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