स्त्री रोग, प्रसूति एवं बाल रोग चिकित्सा
Stri Rog, Prasuti Evam Bal Rog Chikitsa

34.00

AUTHOR: Brahmavarchas (ब्रह्मवर्चस्)
SUBJECT: Stri Rog, Prasuti Evam Bal Rog Chikitsa | स्त्री रोग, प्रसूति एवं बाल रोग चिकित्सा
CATEGORY: Yoga And Health
LANGUAGE: English
EDITION: 2016
PAGES: 136
PACKING: Paper Back
WEIGHT: 135 g.
Description

स्त्री स्वास्थ्य की महत्ता

उत्तम कार्य हेतु अच्छे स्वास्थ्य और निरोगता की परम आवश्यकता होती है। विशेषकर स्त्री स्वास्थ्य की क्योंकि स्त्री जीवन पर ही देश की भावी सन्तति और पीढ़ी की आधारशिला निर्भर होती है। इसी बात को महर्षि चरक ने कहा है-

“स्त्रीषु प्रीतिर्विशेषेण स्त्रीष्वपत्यं प्रतिष्ठितम्
धर्माथौ स्त्रीषु लक्ष्मीश्च लोकाः प्रतिष्ठिताः ” ॥ (च.चि. २.प्र.)

सम्पूर्ण स्त्री जीवन को देखते हुए हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि स्त्रियों के बाल्यकाल से लेकर मृत्यु पर्यन्त ऐसी घटनायें एवं प्राकृतिक परिवर्तन होते रहते हैं, जिसका असर उनके सम्पूर्ण शारीरिक, मानसिक विकास पर पड़ता है। ये ऐसे परिवर्तन हैं जिन्हें न तो बदला जा सकता है, न ही बचा जा सकता है; क्योंकि ये परिवर्तन स्त्री के लिए हर दृष्टि से आवश्यक भी होते हैं, जिसके कारण उनका जीवन प्रभावित होता है। ऐसे मुख्य पाँच परिवर्तन हैं-

१. रजो दर्शन और ऋतुकाल
२. विवाह और मैथुन
३. गर्भावस्था आधीसार
४. प्रसूतावस्था।
५. रजो निवृत्ति।

ये परिवर्तन स्त्री के सम्पूर्ण जीवन काल में नियमित रूप से क्रमशः चलते रहते हैं।

जीवन की सामान्य रूप से चार अवस्थाएँ होती हैं; परन्तु स्त्री के शारीरिक परिवर्तन इन चारों अवस्थाओं के उपरान्त भी चलते रहते हैं। जिनमें स्त्री को कष्ट भी होता है, सुख भी मिलता है। इसके लिए जानकारी व चिकित्सक की सलाह आवश्यक होती है।

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