वेद संस्कृति, विज्ञान, शिक्षा के मूलाधार है। वेद विद्या के अक्षय भण्डार और ज्ञान के अगाध समुद्र है।
संसार में जितना भी ज्ञान, विज्ञान, कलाएँ हैं, उन सबका आदिस्रोत वेद है। वेद में मानवता के आदर्शों का पूर्णरूपेण वर्णन है। सृष्टि के आरम्भ में मनुष्यों का पथ-प्रदर्शन वेदों के द्वारा ही हुआ था। वेद न केवल प्राचीन काल में उपयोगी थे अपितु सभी विद्याओं का मूल होने के कारण आज भी उपयोगी है और आगे भी होगें। मनुष्यों की बुद्धि को प्रबुद्ध करने के लिए उसे सृष्टि के आदि में परमात्मा द्वारा चार ऋषियों के माध्यम से वेद ज्ञान मिला। ये वेद चार हैं, जो ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद के नाम से जाने जाते हैं। हम इन चारों वेदों का संक्षिप्त परिचय देते हैं
सम्पूर्ण वेद भाष्य
“संसार के पुस्तकालय में वेद सबसे प्राचीन है” इस बात को सभी पाश्चात्य विद्वानों ने स्वीकार किया है । भारत की धार्मिक परम्परा चारों वेदों को परमात्मा का अनादि ज्ञान मानती है जो सृष्टि के आरम्भ में मानव जाति के हितार्थ ऋषियों के माध्यम से दिया गया था ।
ऋग्वेद का प्रकाश अग्नि ऋषि के हृदय में हुआ था। ऋग्वेद की महिमा का वर्णन करते हुए मैक्समूलर ने कहा- जब तक पृथिवी पर पर्वत और नदियाँ रहेंगी तब तक संसार के मनुष्यों में ऋग्वेद की कीर्ति का प्रचार रहेगा ।
ऋग्वेद विज्ञान वेद है । इस में तृण से लेकर ईश्वरपर्यन्त सब पदार्थों का विज्ञान भरा हुआ है । प्रकृति क्या है ? जीव क्या है ? जीव का उद्देश्य क्या है और उस लक्ष्य प्राप्ति के साधन क्या हैं ? ईश्वर का स्वरूप क्या है ? उसकी प्राप्ति क्यों आवश्यक है और वह किस प्रकार हो सकती है ? इत्यादि सभी बातों का वर्णन ऋग्वेद में मिलेगा ।
ऋग्वेद में दर्शन, तत्त्वज्ञान तथा आचार एवं नीति विषयक मन्त्रों का बाहुल्य है । ऋक का अर्थ है जिससे स्तुति की जाये । अतः स्तुतिपरक मन्त्रों का समुदाय ही ऋग्वेद है । ऋग्वेद के सूक्तों में प्रमुख रूप से श्रद्धा एवं भक्ति द्वारा स्वतन किया गया है इसलिए इसके विषय को प्रमुख रूप से धार्मिक तथा आध्यात्मिक कहा जा सकता है । ऋग्वेद के दो ब्राह्मण हैं ‘ ऐतरेय ‘ और ‘ कौषीतकी ‘ । इसका उपवेद आयुर्वेद है ।
महर्षि दयानन्द ने ऋग्वेद का भाष्य करना प्रारम्भ किया था , परन्तु वह पूर्ण न हो सका । स्वामी जी सातवें मण्डल के 61 वें सूक्त के दूसरे मन्त्र तक ही भाष्य कर पाये । आगे का भाष्य उन्हीं की शैली में अन्य वैदिक विद्वानों ने पूर्ण किया ।
यजुर्वेद का विषय केवल कर्मकाण्ड ही नहीं है
बल्कि इसमें वर्णित हैं – अध्यात्म एवं दर्शन, सृष्टि – रचना तथा मोक्ष , नैतिक तथा आचारमूलक शिक्षाएँ, मनोविज्ञान, बुद्धिवाद, समाज – दर्शन, राष्ट्र – भावना, पर्यावरण का संरक्षण काव्य तत्त्व के अतिरिक्त यजुर्वेद में विद्यमान हैं, विश्वमानव की एकता जैसे उपयोगी विषय ।
यजुर्वेद चारों वेदों के क्रम में दूसरे स्थान पर है । यद्यपि यजुर्वेद कर्मकाण्ड का वेद है , परन्तु अध्यात्म के गूढ़ रहस्य भी इसमें छिपे हुए हैं । इसके इकत्तीस, बत्तीस, छत्तीस और चालीसवें अध्याय तो इसके देदीप्यमान रत्न हैं ।
तेइसवें अध्याय की ‘ब्रह्मोद्य ऋचाओं’ ( 45 से 62 ) जैसी अनूठी रचना तो संसार के साहित्य में दुर्लभ है । आदर्श राष्ट्र का जो स्वरूप ‘आ ब्रह्मन् ब्राह्मणो’ ( 22/22 ) में प्रस्तुत किया । है – उसकी तुलना करना असम्भव है । यजुर्वेद 34 / 1-6 में शिवसंकल्प और मनोविज्ञान का हृदयहारी चित्रण है । जीवन निर्माण के अन्य भी अनेक दिव्य सन्देश इस वेद में है
सामवेद ( सम्पूर्ण हिन्दी भाष्य , शब्दार्थ सहित )
सामवेद का यह भाष्य महर्षि दयानन्द की शैली , संस्कृत और आर्य भाषा – हिन्दी में उनकी विचारसरणी पर किया गया है । पाठक देखेंगे कि मन्त्र – मन्त्र में , पद्य – पद्य में किस कार ऋषि दयानन्द के भावों को प्रतिष्ठित किया गया है । सामवेद उपासना का वेद है । यह हृदय का वेद है । उपासना क्यों करें ? किसकी उपासना करें ? कहाँ करें ? कैसे करें ? इन सभी प्रश्नों का उत्तर सामवेद में मिलेगा । परमात्मा को ढूँढ़ने के लिए कहीं बाहर जाने की आवश्यकता नहीं है । वह तो हमारे हृदय – मन्दिर में ही विद्यमान् है ।
यह भाष्य सरल है , व्याकरण के अनुकूल है और गौरवपूर्ण है । इसे पढ़कर पाठक को वेद के महत्त्व और गुण – गरिमा का ज्ञान होगा । इस वेद भाष्य में गहराई तक उतरने का प्रयत्न किया गया है । पढ़िए , वेद – सागर में गोते लगाइए , वेद की शिक्षाओं को जीवन में धारण करके अपने जीवन को आनन्दमय बनाइए ।
अथर्ववेद धर्म , अर्थ , काम और मोक्ष के साधनों की कुन्जी है ।
जीवन एक सतत् संग्राम है । अथर्ववेद जीवन – संग्राम में सफलता प्राप्त करने के उपाय बताता है । अथर्ववेद युद्ध और शान्ति का वेद है । शरीर में शान्ति किस प्रकार रहे , उसके लिए नाना प्रकार की औषधियों का वर्णन इसमें है ।
परिवार में शान्ति किस प्रकार रह सकती है , उसके लिए भी दिव्य नुस्खे इसमें हैं । राष्ट्र और विश्व में शान्ति किस प्रकार रह सकती है , उन उपायों का वर्णन भी इसमें है । यदि कोई देश शान्ति को भंग करना चाहे तो उससे किस प्रकार युद्ध करना , शत्रु के आक्रमणों से अपने को किस प्रकार बचाना और उनके कुचक्रों को किस प्रकार समाप्त करना , इत्यादि सभी बातों का विशद वर्णन अथर्ववेद में है ।
अथर्ववेद के वर्ण्य विषय को न समझ पाने के कारण इसके बारे में कुछ विद्वान् इसे जादू – टोना , मारण – मोहन , उच्चाटन , वशीकरण आदि अभिचार मूलक क्रियाओं का प्रतिपादक समझ बैठे हैं ।
परन्तु अधिकांश मनीषी – विद्वान् इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि अथर्ववेद के सभी मन्त्र विज्ञान – सिद्ध हैं , उन्हें मात्र झाड़ – फूंक या जादू – टोना बताना अनुचित है ।
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