बेताल फिर डाल पर (हॉलैण्ड और अमेरिका की डायरी) Betal Phir Dal Par (Diary of Holland and America)
₹60.00
AUTHOR: | Dr. Dharamvir (डॉ. धर्मवीर) |
SUBJECT: | Betal Phir Dal Par | बेताल फिर डाल पर |
CATEGORY: | Vedic Literature |
LANGUAGE: | Hindi |
EDITION: | 2017 |
PAGES: | 104 |
BINDING: | Paper Back |
WEIGHT: | 140 g. |
भूमिका
नीर-क्षीर-विवेकिनी प्रज्ञारूपी अतुलसम्पदा के धनी और मेरे सखा डॉ. धर्मवीर जी के अन्तस्तल में वैदिक धर्म के प्रचार-प्रसार की ज्वाला अहर्निश देदीप्यमान रहती थी। इसी को सम्बल बनाकर वे भारतवर्ष के प्रत्येक प्रान्त में जाकर जनजागरण करने में तत्पर रहते थे। आपकी ख्याति को सुनकर विदेशों से भी निमन्त्रण आने प्रारम्भ हो गये, परन्तु दयानन्द कॉलेज अजमेर की सेवा में रहने तथा शेष समय में परोपकारिणी सभा की उन्नति के लिए निरन्तर भ्रमणशील रहने से विदेश यात्रा सम्भव नहीं हो पाई।
हॉलैण्डवासी पं. श्री देवनारायण जी के विशेष आग्रह का सम्मान करते हुए भाई धर्मवीर जी ने विदेशों में वैदिक धर्म की ध्वजा फहराने का कार्यक्रम बनाया और तदनुसार हॉलैण्ड, सिंगापुर, अमेरिका आदि अनेक देशों में जाकर वेद का सन्देश सुनाया।
सरिता में गर प्रवाह न हो तो सरिता को सरिता कौन कहे ? कौन उसके जल में निर्मलता ढूँढे ? कौन उसकी कल-कल करती ध्वनियों पर अपने काव्य का पाठ करे ? किस कवि की कल्पना उसकी अंगड़ाइयों व अठखेलियों को अपने शब्दों में बाँधे? कौन देखना चाहे उसके उद्गम को ? पक्षी तो जैसे गान करना ही छोड़ दें, अरे! उन्हें कैसा हर्षोल्लास ? जिस पर चहचहाहट फूटे। स्थिरता में रस कहाँ? प्रवाह ही तो जीवन है। जीवन की तो कल्पना भी प्रवाह पर टिकी है। निरन्तर चलते जाना, बस यही तो है जीवन। रुके ! कि बस…… रुक गया।
फिर मनीषियों से यह आशा करना कि उनमें प्रवाह न हो, असम्भव है। अरे ! वे तो बने ही बहने के लिये हैं। सरिता की भाँति बहते जाना और संसार की पिपासा शान्त करना उनका स्वभाव है। न जाने कितने पिपासु उनके ज्ञान-सागर में गोता लगाते हैं और बहुमूल्य रत्नों को पाते हैं। जीवन बदल जाते हैं। दिशायें बदल जाती हैं। ऐसे ही एक मनीषी ने अपने जीवन के कुछ पल लिपिबद्ध कर दिये। वे पल जो उन्होंने अपनी विदेश यात्रा में व्यतीत किये। ‘बेताल फिर डाल पर’ उन्हीं लिपिबद्ध पलों का संग्रह है। मूल रूप से तो ये लेख हैं जो परोपकारी पत्रिका में क्रम से प्रकाशित हुये थे।
पर कालान्तर में इन लेखों की उपयोगिता को देखते हुये इन्हें पुस्तकरूप दिया गया है। जिस मनीषी की हम चर्चा कर रहे हैं उसका नाम है डॉ. धर्मवीर। डॉ. धर्मवीर ऋषि दयानन्द की उत्तराधिकारिणी परोपकारिणी सभा के प्रधान थे, वे बेबाक लेखनी के धनी, प्रखर वक्ता, गहरे विचारक तथा दार्शनिक थे। वेद उनकी जिह्वा पर विराजमान थे। इसी ज्ञान-विज्ञान को फैलाने के लिये वे देश-विदेश में घूमते रहते थे। उन्होंने अपना जीवन आर्यसमाज व ऋषि दयानन्द को समर्पित कर दिया था। प्रचार-प्रसार की इतनी लगन थी कि साल में कुछ एक दिन ही आश्रम में रहा करते थे। बाकी पूरा साल यात्राओं में ही व्यतीत होता था।
डॉ. धर्मवीर जी प्रतिदिन सायंकाल पूरे दिन की घटनाओं को दैनन्दिनी में लिखा करते थे। उन्होंने अपनी यात्रा (हॉलैण्ड) का विवरण परोपकारी पत्रिका में देना प्रारम्भ किया, वह इसलिये कि पाठक वहां की संस्कृति तथा व्यवस्थाओं से परिचित हो सकें। पाठकों को यह परिचय बेहद पसन्द आया और आग्रह किया गया कि यह यात्रा-वृतान्त लगातार लिखा जाये। इसलिये कई अंकों में निरन्तरता के साथ छपता रहा। किसने सोचा था कि यह परिचय एक दिन इतिहास बन जायेगा। पर बन गया। इसके बाद वे जब अमेरिका गये, तब भी पाठकों का तथा आर्यजनता का विशेष आग्रह हुआ कि इस यात्रा का विवरण भी लिखा जाये। इसलिये पुनः परोपकारी पत्रिका में अमेरिका यात्रा-विवरण भी छपा।
उन्होंने कितनी यात्रायें कीं, यह गिनना तो दूर अनुमान करना भी सम्भव नहीं है। सामान्यतया यात्रायें मनुष्य को बोझ मालूम होती हैं खासकर तब जब वे किसी कार्य के लिये की जा रही हों। लेकिन डॉ. धर्मवीर यात्राओं का आनन्द लिया करते थे। वे चलते-फिरते लोगों को अपना बना लिया करते थे। हँसमुख स्वभाव था और तीव्र मेधा थी इसलिये लोग उनसे तुरन्त प्रभावित हो जाते थे। उनकी लगभग सारी यात्रायें सिर्फ एक कार्य के लिये हुआ करती थीं, वह है धर्म-प्रचार।
जिन्होंने उनके साथ यात्रायें की हैं, वे जानते हैं कि वे यात्रा को कितना जिया करते थे। सूक्ष्म से सूक्ष्म बातों तथा घटनाओं पर ध्यान देना उनका स्वभाव था। पाठक स्वयं इस बात का अवलोकन करेंगे। उनका ध्यान सब ओर रहता था पर फिर भी वे स्वयं में मग्न रहते थे।
उपर्युक्त यात्रा-विवरणों को भी उनकी डायरी से लेकर प्रकाशित किया गया है। विदेश में रहने वाले लोगों की रुचि, वेद-प्रचार में कठिनाई, वहाँ की सुव्यवस्था, स्वच्छता तथा देश के प्रति निष्ठा आदि अनेक विषयों को लेकर डॉ. धर्मवीर जी ने इन यात्राओं का रोचक वर्णन किया है। इन प्रचार यात्राओं को प्रकाशित करके परोपकारिणी सभा ने डॉ. धर्मवीर जी के प्रति अपनी सच्ची श्रद्धाञ्जलि अर्पित की है, अतः सभा धन्यवादार्ह है।
आशा है कि पाठकों को कुछ नया मिलेगा।
विरजानन्द दैवकरणि
परोपकारिणी सभा, अजमेर
Weight | 140 g |
---|---|
Author | |
Language |
Reviews
There are no reviews yet.