वैदिक दर्शन (सम्पूर्ण 6)
Vedic Darshan (Complete 6)

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AUTHOR: Acharya Udayveer Shastri
SUBJECT: Vedic Darshan (Complete 6)
CATEGORY: Darshan
LANGUAGE: Hindi
BINDING: Hard Cover
VOLUME: 6
PAGES: 3515
WEIGHT: 4600 GRMS
Description

वैदिक दर्शन
भाष्यकार – आचार्य उदयवीर शास्त्री जी

दर्शन शब्द का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ – “दृश्यतेऽनेन इति दर्शनम्” से सम्यक दृष्टिकोण ही दर्शन है अर्थात् समग्रता को यथार्थरूप में कहने वाला दर्शन है। जो पदार्थ जैसा है, उसे वैसा ही उपदेश करना सत्य है और यही सत्य दर्शनों द्वारा प्रतिपादित किया गया है। वेद को प्रमाणित मानने वाले छः दर्शन हैं, इन्हीं को वैदिक दर्शन या षड्दर्शन कहते हैं। यह छः दर्शन हैं – न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा और वेदान्त।

महर्षि दयानन्द जी ने अपने ग्रन्थ “सत्यार्थप्रकाश” में दर्शनों के अध्ययन-अध्यापन की विधि का उल्लेख किया है

सभी दर्शनों में कुछ समानताएं हैं, जो निम्न प्रकार है –

  1. सभी शास्त्र अपने प्रधान विषय का परिज्ञान करने के साथ-साथ अनेक उपविषयों का भी परिज्ञान कराते हैं।
  2. सभी शास्त्र वेदों को प्रमाण के रूप में स्वीकार करते हैं।
  3. सभी शास्त्र एक-दूसरे के पूरक हैं।

इन सभी दर्शनों के अपने-अपने विषय है। जिनका संक्षिप्त परिचय यहाँ दिया जाता है –

१. मीमांसा दर्शन – इसमें धर्म एवम् धर्मी पर विचार किया गया है। यह यज्ञों की दार्शनिक विवेचना करता है लेकिन साथ-साथ यह अनेक विषयों का वर्णन करता है। इसमें वेदों का नित्यत्व और अन्य शास्त्रों के प्रमाण विषय पर विवेचना प्रस्तुत की गई है।

२. न्याय दर्शन – इस दर्शन में किसी भी कथन को परखने के लिए प्रमाणों का निरुपण किया है। इसमें शरीर, इन्द्रियों, आत्मा, वेद, कर्मफल, पुनर्जन्म आदि विषयों पर गम्भीर विवेचना प्राप्त होती है।

३. योग दर्शन – इस दर्शन में ध्येय पदार्थों के साक्षात्कार करने की विधियों का निरुपण किया गया है। ईश्वर, जीव, प्रकृति इनका स्पष्टरूप से कथन किया गया है। योग की विभूतियों और योगी के लिए आवश्यक कर्तव्य-कर्मों का इसमें विधान किया गया है।

४. सांख्य दर्शन – इस दर्शन में जगत के उपादान कारण प्रकृति के स्वरूप का वर्णन, सत्त्वादिगुणों का साधर्म्य-वैधर्म्य और उनके कार्यों का लक्षण दिया गया है।
त्रिविध दुःखों से निवृत्ति रूप मोक्ष का विवेचन किया गया है।

५. वैशेषिक दर्शन – इसमें द्रव्य को धर्मी मानकर गुण आदि को धर्म मानकर विचार किया है। छः द्रव्य और उसके 24 गुण मानकर उनका साधर्म्य-वैधर्म्य स्थापित किया गया है। भौतिक-विज्ञान सम्बन्धित अनेको विषयों को इसमें सम्मलित किया गया है।

६. वेदान्त दर्शन – इस दर्शन में ब्रह्म के स्वरूप का विवेचन किया गया है तथा ब्रह्म का प्रकृति, जीव से सम्बन्ध स्थापित किया गया है। उपनिषदों के अनेको स्थलों का इस ग्रन्थ में स्पष्टीकरण किया गया है।

इन सभी दर्शनों पर सरल और विस्तृत भाष्य आचार्य उदयवीर शास्त्री द्वारा रचित है। यह भाष्य दर्शनों के वास्तविक अभिप्राय को प्रकट करता है। इस भाष्य समुच्चय में प्रत्येक दर्शन भाष्य से पूर्व विस्तृत भूमिका दी गयी है और अन्त में सूत्रानुक्रमणिका दी गई है। दर्शनों को आत्मसात् करने के लिए इस दर्शन समुच्चय का अवश्य अध्ययन करें।

दर्शन को ‘आन्वीक्षिकीविद्या’ कहते हैं। देखे हुए के पीछे देखना अन्वीक्षण है, तो कहना चाहिए कि देखे हुए के पीछे देखना दर्शन है। दर्शन की इस परिभाषा से दो बातें स्पष्ट हुईं। एक तो यह कि दो से देखना है और दूसरी यह कि दो को देखना है। चर्मचक्षु और परमचक्षु से देखना दो से देखना है ।

इदम् को देखना और तत् को देखना दो को देखना है। इदम् का दर्शन चर्मचक्षु से होता है। तत् का दर्शन परमचक्षु से होता है। इस बात को ईशावास्यम् इदं सर्वम् मंत्र से समझा जा सकता है। इदम्-तत्त्व प्रत्यक्ष है और तत्-तत्त्व परोक्ष है। प्रत्यक्ष का दर्शन बाह्य चक्षु से होता है और परोक्ष का दर्शन आन्तर चक्षु से ।

इदम् को स्पष्ट करते हुए उसे हिरण्मय पात्र कहा है। तत् को स्पष्ट करते हुए उसे सत्य, ओम्, खम् अथवा ब्रह्म कहा है। यहाँ का हिरण्मय पात्र प्रत्यक्ष जगत् का प्रतीक बनकर आया है। जिधर दृष्टि डालोगे वही पदार्थ हिरण्मय है, आकर्षक है, लुभावना है, आसक्ति का विषय है।

व्यक्ति इसमें आसक्त न हो, उसके लिए आवश्यक है कि उस तत्त्व को भी निहारे कि जिस तत्त्व से इसकी हिरण्मयता है। वह तत्त्व मात्र सत्य है, ओम् है। उसका दर्शन वास्तविक दर्शन है।

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Vedic Darshan (Complete 6)

  1. Kewal Ram

    आर्ष साहित्य की सर्विस और उनके पदाधिकारी का व्यवहार बहुत ही उत्तम और श्रेष्ठ है ऐसी संस्थाओं की राष्ट्र को आवश्यकता है जो वैदिक संस्कृति के प्रचार और प्रसार के लिए कार्य कर रही है और आर्ष साहित्य का में बहुत-बहुत धन्यवाद करता हूं आपकी सर्विस और पैकिंग और व्यवहार मुझे बहुत अच्छा लगा 💐💐💐

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