वेदों में राजनीतिशास्त्र
Vedon Mein Rajniti Shastra

275.00

AUTHOR: Dr. Kapildev Dwivedi
SUBJECT: वेदों में राजनीतिशास्त्र | Vedon Mein Rajniti Shastra
CATEGORY: Vedic Dharma
LANGUAGE: Hindi
EDITION: 2018
PAGES: 352
BINDING: Paper Back
WEIGHT: 365 GM
Description

प्राक्कथन

वेदों का महत्त्व- वेद आर्यजाति के प्राण हैं। ये मानवमात्र के लिये प्रकाशम्तम्भ और शक्ति के स्त्रोत हैं। विश्व को संस्कृति का ज्ञान देने वाले जैद है। वेद ही विपुल विश्वकल्याण और विश्वशान्ति के प्रथम उद्घोषक हैं। वेद ही मानवमात्र के लिये विकास का मार्ग प्रशस्त करते हुए सुख और शान्ति की स्थापना कर सकता है।

वेद और राजनीतिशास्त्र- मनु का यह कथन उपयुक्त है कि’ सर्वज्ञानमयो हि मः।’ (मनु. २.७) अर्थात् वेदों में सभी विद्याओं के सूत्र विद्यमान हैं। वेदों में राजनीतिशास्त्र से संबद्ध सैकड़ों मन्त्र हैं। इनमें राज्य के प्रति राजा के कर्तव्य, राजा-प्रजा के सम्बन्ध, राष्ट्र का स्वरूप, सभा समिति और विदद्य की स्थापना, विधान और विधिनिर्माण, राजा का निर्वाचन, राज्याभिषेक, युद्ध, सैन्य-व्यवस्था, विविध शस्त्राल, अर्थव्यवस्था, शासन- प्रणाली आदि का संक्षिप्त वर्णन है। उपर्युक्त प्रायः सभी विषयों पर आवश्यक सामग्री उपलब्ध है। उसका ही इस ग्रन्थ में आलोचनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है।

वेदामृतम् – ग्रन्थमाला – इस ग्रन्थमाला के १६ भाग प्रकाशित हो चुके हैं। इस ग्रन्थ में वेदामृतम् के भाग १७ से २० की समस्त सामग्री संकलित की गई है। राज्य- प्रशासन, सभा समिति आदि का स्वरूप, सैन्य-व्यवस्था और विविध शस्त्रास्त्र आदि। उपयोगिता की दृष्टि से चारों भागों को एक खंड में दिया जा रहा है।

सामग्री-संकलन- वेद केवल राजनीतिशास्त्र के ग्रन्थ नहीं हैं। उनमें राजनीतिशास्त्र से संबद्ध सामग्री इधर-उधर बिखरी हुई है। उसको विषयानुसार संकलित किया गया है। महाभारत शान्तिपर्व, कौटिलीय अर्थशास्त्र और शुक्रनीति आदि में राजनीतिशास्त्र विषयक सामग्री बहुत अधिक है। मैंने प्रयत्न किया है कि उसमें से अत्यन्त उपयोगी सामग्री पाठकों के लिये लाभार्थ यथास्थान दी जाय। इससे पाठकों का ज्ञानवर्धन होगा और तुलनात्मक अध्ययन भी हो सकेगा। वेदों में सूत्ररूप में दिये विषयों का विशदीकरण भी इससे प्राप्त हो सकेगा।

राजनीतिशास्त्र – राजनीतिशास्त्र मानवजीवन का अंग है। राष्ट्र का प्रशासन जनता के विकास, सुख-शान्ति, उद्योग, सुरक्षा, आर्थिक प्रगति आदि के लिये उत्तरदायी है। प्रशासन की उत्कृष्टता से ही देश के उत्कर्ष का मार्ग प्रशस्त होता है। जनता को सुख-समृद्धि प्रशासन पर निर्भर है। राजनीतिशास्त्र उस उत्कर्ष को प्राप्त कराने का साधन है। अतएव शुक्रनीति में कहा गया है कि यह नीतिशास्त्र सभी का हित करने वाला है, राज्य में शान्ति और सुव्यवस्था का स्थापक है। धर्म अर्थ काम और मोक्षरूपी चतुर्वर्ग को देने वाला है।

सर्वोपकारकं लोकस्थितिकृद् नीतिशास्त्रकम् ।
धर्मार्थकाममूलं हि स्मृतं मोक्षप्रदं यतः ।।

मैने प्रयत्न किया है कि विषय को सरल और सुबोध बनाया जाय। साथ ही यह भी प्रयन्त किया है कि विषय से संबद्ध कोई आवश्यक सामग्री छूटने न पावे। ग्रन्य के निम्नलिखित अध्यायों में विशेष महत्त्वपूर्ण सामग्री दी गई है- अध्याय ६. राज्य के विविध अंग, ७. राजा का निर्वाचन, राज्याभिषेक, १०. विविध शासन प्रणालियाँ, १२. प्रमुख संस्थाएं, १६. सैन्य-व्यवस्था, १७. विविध शस्त्राख ।

कृतज्ञता प्रकाशन- वेदों और ब्राह्मणग्रन्थों के अतिरिक्त महाभारत, कौटिलीय अर्थशास्त्र और शुक्रनीति से बहुत उपयोगी सामग्री प्राप्त हुई है। इनके अतिरिक्त ये ग्रन्थ भी बहुत उपयोगी सिद्ध हुए हैं- १. डा. काशीप्रसाद जायसवाल Hindu Polity, २. डा. श्यामलाल पाण्डेय वेदकालीन राज्य-व्यवस्था, ३. डा. अलतेकर प्राचीन भारतीय शासनपद्धति, ४. डा. सत्यकेतु विद्यालंकार प्राचीन भारत की शासन संस्थाएँ। तदर्थ इनका बहुत आभारी हूँ।

ग्रन्थ के प्रकाशन की व्यवस्था ज्येष्ठ पुत्र डॉ० भारतेन्दु ने की है। प्रूफ रीडिंग आदि कार्यों में परिवार के इन सदस्यों ने विशेष सहयोग दिया है- डॉ०धर्मेन्दु, ज्ञानेन्दु, डॉ० विश्वेन्दु, डॉ० आर्येन्दु एवं पुत्रवधुएँ श्रीमती डॉ० सविता, डॉ० जया, सुनीता अपर्णा एवं रीना, इन सभी को हार्दिक आशीर्वाद है।

आशा है यह ग्रन्थ जनता को वेदों के प्रति रुचि जागृत करेगा और भारतीय संस्कृति के प्रति उनका अनुराग बढ़ाएगा।

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