आर्य समाज का इतिहास History of Arya Samaj
₹400.00
AUTHOR: | Rajendra ‘Jigyasu’ (राजेंद्र ‘जिज्ञासु’) |
SUBJECT: | आर्य समाज का इतिहास | History of Arya Samaj | Arya Samaj Ka Itihaas |
CATEGORY: | History |
PAGES: | 296 |
EDITION: | 2023 |
LANGUAGE: | Hindi |
BINDING: | Hardcover |
WEIGHT: | 700 G. |
यह इतिहास क्यों पढ़ें?
महर्षि दयानन्द की विचारधारा ने जनमानस पर अत्यन्त गहरा प्रभाव छोड़ा। सर्वप्रथम स्वराज्य और स्वशासन का उद्घोष करने वाले महर्षि दयानन्द ही थे। महर्षि दयानन्द ने ही स्वतन्त्रता संग्राम का शंखनाद किया और भारतीयों के मन में क्रान्ति का बीज बोया। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लेने वाले 80 प्रतिशत नेता और क्रान्तिकारी कहीं न कहीं आर्यसमाज की विचारधारा से प्रभावित थे।
आर्यसमाज का सबसे अधिक विस्तार पंजाब में था और देश विभाजन का सबसे अधिक नुकसान पंजाब को ही हुआ। इसीलिए देश विभाजन से आर्यसमाज को भारी नुकसान उठाना पड़ा। हमारी कई संस्थाएं, प्रमुख आर्यसमाजें, स्कूल व कॉलेज, पुस्तकालय व प्रकाशन विभाग पाकिस्तान में ही रह गए, जिनको विधर्मियों ने नष्ट कर दिया। विभाजन के बाद आर्यसमाज ने अपने आहत शरीर से कैसे जीवन यापन किया और कैसे वह फिर से उठ खड़ा हुआ, यह इस भाग से जानें, प्रा. राजेन्द्र ‘जिज्ञासु’ की खोजपूर्ण कलम से लिखे प्रेरक प्रसंगों के माध्यम से।
आशा है बड़ों की यह बड़ी बातें आने वाली पीढ़ियों का मार्गदर्शन करेंगी और उनमें नई उर्जा का संचार करेंगी।
आभार
दयालु, कृपालु परमपिता परमात्मा ने इस विनीत को एक देन यह दी कि जब लेखन कला में कुछ सिद्धि-प्रसिद्धि प्राप्त होने लगी तो प्यारे प्रभु ने देश धर्म के इतिहास की सेवा व सुरक्षा के लिये एक अद्भुत शैली सुझाई। देश धर्म के लिये जीवन देने वाले बलिदानियों के तप, त्याग व शौर्य की घटनाओं का मूल्याङ्कन करने की विधा भी सुझाई और सिखाई। जिस भी छोटे-बड़े बलिदानी वीर पुरुष पर कोई विशेष लेख या पुस्तक लिखी साथ के साथ उसकी असाधारण प्रेरक घटनाओं का ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्व अथवा इतिहास में क्या स्थान है? यह सहज भाव से लिखना इस लेखक का स्वभाव सा बन गया।
देश-विदेश के गुणी पारखी विद्वानों ने 65-66 वर्ष पूर्व मेरी लेखन शैली की इस विशेषता को यथोचित महत्त्व दिया यथा जब इस लेखक ने पहली महत्त्वपूर्ण जीवनी ‘वीर संन्यासी’ इस शैली से लिखी तो पूज्य पण्डित गंगाप्रसाद उपाध्याय, श्री स्वामी सर्वानन्द जी महाराज तथा प्रिं० रामचन्द्र जावेद जी ने तो लेखक की शैली के इस गुण को पहचाना ही। सागर पार अमरीका की American Biographical Institute ने भी पुस्तक छपते ही इसे कहीं से प्राप्त कर एक प्रफार्म (Perform) भेजकर मेरे जीवन की पूरी-पूरी जानकारी मांगी गई।
श्री पं० मनसाराम वैदिक तोप का नाम किसी ने भी स्वराज्य संग्राम के इतिहास में कभी नहीं दिया। इस सेवक ने सप्रमाण उनकी जीवनी में लिखा कि भारत के स्वराज्य संग्राम में Contempt of court [न्यायालय का अपमान करने के अपराध] के कारण सबसे पहले दोषी सत्याग्रही होने से उनकी सारी सम्पत्ति जब्त की गई। स्वामी सत्यप्रकाश भारत के एकमेव वैज्ञानिक थे जो स्वराज्य संग्राम में जेल गये। यह सबसे पहले उनके जीवन पर लेख में इसी लेखक ने लिखने का यश पाया।
इसी शैली से जो भी जीवनी लिखी, उसमें एक-एक घटना का इतिहास में क्या स्थान है? यह देने का भरपूर प्रयास किया। निर्विवाद रूप से इस इतिहास प्रेमी ने आर्यसमाज के प्रत्येक ज्ञात-अज्ञात निर्माता और बलिदानी तपःपूत का जीवन चरित्र लिखते हुए आर्यसमाज की सब महत्त्वपूर्ण घटनाओं का मूल्याङ्कन करते हुए आर्यसमाज का सम्पूर्ण इतिहास लेखबद्ध करके उसे सुरक्षित कर दिया।
आर्यसमाज में इतिहास पर लिखने की जिनको सनक है, वे अपने लेखों व पुस्तकों में लौहपुरुष स्वामी स्वतन्त्रानन्द, क्रान्तिवीर पं० नरेन्द्र, भूमण्डल प्रचारक मेहता जैमिनि, पं० रामचन्द्र देहलवी, जीवन यात्रा स्वामी श्रद्धानन्द, रक्तसाक्षी पं० लेखराम, सतत साधना का लाभ लेते हुए भले ही अपनी जानकारी के स्रोत का उल्लेख नहीं करते तथापि उनका आभार प्रकट करना मैं अपना कर्त्तव्य समझता हूँ। उन्होंने मेरे परिश्रम का लाभ उठाया यह अच्छी बात है।
संसार में अपवाद तो सर्वत्र मिल जाता है। कुछ साहित्यसेवी तो अपनी जानकारी के स्रोत के रूप में मेरे द्वारा लिखी जीवनियों का खुलकर उल्लेख करते हैं।
कथा, प्रवचनों तथा व्याख्यानों के लिए यह इतिहासः- अब इस संस्थान की इस इतिहास ग्रन्थमाला को पढ़कर सब आर्यसमाजी वक्ता, प्रवक्ता, प्रवचन कर्ता धर्म, दर्शन, तुलनात्मक धर्माध्ययन, शंका समाधान के लिये इस इतिहास का खुलकर लाभ लेंगे तो इनको यश मिलेगा, समाज की शोभा होगी। हमने इस भाग में तो विशेष रूप से इस बात का ध्यान रखा है कि सप्ताह भर की व्याख्यान माला देने वालों तथा कथा करने वालों को इस इतिहास ग्रन्थमाला से रोचक, प्रेरक, ठोस व प्रामाणिक सामग्री प्राप्त हो। वक्ता व श्रोता सभी इस इतिहास का लाभ लेकर गौरवान्वित होंगे।
तनिक ‘ऋषि दयानन्द फैल रहा है’ इस शीर्षक से दी गई सामग्री के आर-पार जाकर हमारे विद्वान यह अनुभव करेंगे कि वर्तमान काल में वैदिक धर्म प्रचार के लिए ऐसी सामग्री और कहाँ मिल सकती है?
केवल इतिहास के लिये इतिहास नहीं: इतिहास की रक्षा तो इस इतिहास से होगी ही परन्तु केवल इस इतिहास का उपयोग केवल ऐतिहासिक पर्वों, महापुरुषों के जन्मदिवस व बलिदान दिवस के लिये ही न समझें। आर्यसमाज के नित्य प्रति के कार्यक्रमों व धर्मप्रचार के लिए हर घड़ी तथा हर दिन इसका उपयोग करने से लाभ ही लाभ मिलेगा।
इतिहास के इस भाग के लेखन काल में लेखक दुर्घटना ग्रस्त हो गया। ईश कृपा से मरने से तो बच गया। समाज सेवा, धर्म रक्षा और प्रचार के लिये प्रभु ने और अवसर दिया परन्तु तब महीनों चारपाई पर पड़े रहने से यह भाग अधूरा पड़ा रहा। ठीक होने पर इसे पूरा करते हुये कुछ घटनायें दोहराई गईं। उन्हें यथा सम्भव सुधारा गया है। इतिहास के ऐसे ग्रन्थों में कुछ प्रसंग आशिक रूप में दोहराने की अनिवार्यता भी होती है।
उन्हें पुनरुक्ति न समझा जावे। इस भाग में गुणी गवेषक पर्याप्त ऐसी सामग्री पायेंगे जो पहली बार ही इतिहास में पढ़ने को मिलेगी। एक शताब्दी तक ऐसी दबी पड़ी सामग्री का अनावरण करना किसी को न सूझा। श्री अजय जी की सूझ व दूरदर्शिता से इसका सप्रमाण अनावरण यह संस्थान कर रहा है।
यह आर्यसमाज के इतिहास की एक अपूर्व और गौरवपूर्ण घटना है। समय मिला तो इतिहास विषयक एक और ग्रन्थ भी दिया जावेगा।
लेखक तथा प्रकाशक का एक ही प्रयोजन है:- महर्षि की वाटिका प्यारी सदा फूले-फले
आर्य जाति का सेवक
राजेन्द्र ‘जिज्ञासु’
Weight | 700 g |
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