वेद-गोष्ठी (वेदों में राजनीति- विचार)
Veda-Gosthi (Politics- Thoughts in Vedas)

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AUTHOR: Dr. Dharamveer
SUBJECT: वेद-गोष्ठी (वेदों में राजनीति- विचार) | Veda-Gosthi (Politics- Thoughts in Vedas)
CATEGORY: Vedic Science
LANGUAGE: Sanskrit – Hindi
EDITION: 2012
PAGES: 203
BINDING: Paper Back
WEIGHT: 230 GM

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Description

Veda-Gosthi (Politics- Thoughts in Vedas)

वेद-गोष्ठी (वेदों में राजनीति- विचार)

Veda-Gosthi (Politics- Thoughts in Vedas)

वेद-गोष्ठी (वेदों में राजनीति- विचार)

सम्पादकीय

भारत को एक रखने और संसार को मार्ग दर्शन देने का सामर्थ्य वेद में है। जब तक इस देश की जनता वेद से जुड़ी रही, यह देश एक ओर अखण्ड रहा और विश्व का मार्ग दर्शक भी रहा। परन्तु जैसे ही देश वेद से विमुख हुआ सारा ज्ञान-विज्ञान, संस्कृति, संस्कार, सम्पदा, समृद्धि इस देश से विदा हो गई। इस रहस्य को स्वामी दयानन्द ने समझा और यहां की जनता को अपने मूल से जोड़ने का प्रयत्न किया। उन्होंने वेद को जनता की वस्तु बनाने का प्रयत्न किया। स्वामी जी ने हिन्दी में वेदों का भाष्य किया। वेद में मानव जीवन के उपयोग की बातें लिखी हैं- यह उन्होंने अपने ग्रन्थों से प्रमाणित किया। आर्यसमाज के नियम और उद्देश्य में वेद को सब सत्य विद्याओं की पुस्तक बताया और सभी को वेद के पठन-पाठन का निर्देश परम धर्म के रूप में किया।

ऋषि दयानन्द ने वेदों के सम्बन्ध में जो मन्तव्य प्रकाशित किया है वह उनका अपना नहीं है। समस्त आर्ष परम्परा ही इन विचारों की प्रवाहिका है। वेद केवल साम्प्रदायिक ग्रन्थ नहीं है। मनु महाराज लिखते हैं। ‘वेदोऽखिलो धर्ममूलम्’, समस्त वेद धर्म का मूल है। वेद में मानव के लिये उपयोगी समस्त ज्ञान-विज्ञान, धर्म, दर्शन, अध्यात्म, संस्कृति सभी कुछ है। इसके ज्ञान से मनुष्य का सर्वांगीण विकास होता है।

भौतिक और आध्यात्मिक दोनों ही क्षेत्रों में मनुष्य उन्नति कर सकता है, इसीलिए कहा गया “सर्वं वेदात् प्रसिध्यति”। आज वेद के महत्त्व को वे समझते हैं जिन्होंने इनका स्वाध्याय किया। वेद मनुष्य के लिए हैं और मनुष्य के जीवन को सुखी बनाने के लिए हैं। इसी कारण वेद संसार को समझने की बात कहते हैं, जिससे मनुष्य संसार की वस्तुओं से लाभ और सुख प्राप्त कर सकें। ऋषि दयानन्द कहते हैं- जड़ वस्तु उपास्य नहीं, परन्तु उपयोगी अवश्य है।

परमात्मा के ज्ञान से जहाँ उपासना का सम्बन्ध है, वहीं संसार के पदार्थों के विज्ञान से उपयोग का सम्बन्ध है। सत्संग, विद्याभ्यास, उपासना तीनों मिलकर मनुष्य को पूर्ण बनाती हैं, इनमें किसी का भी अभाव जीवन की अपूर्णता का द्योतक है। ऐसा ज्ञान संसार में दूसरा कोई नहीं। न केवल इसका अध्ययन-अध्यापन ही महत्त्वपूर्ण है

अपितु इस ज्ञान का संरक्षण आज की परिस्थिति में अधिक आवश्यक हो गया है। यह गोष्ठी इसी क्रम में एक नम्र प्रयास है।

ऋषि दयानन्द और आर्यसमाज के इसी उद्देश्य को पूरा करने के क्रम में ऋषि दयानन्द की उत्तराधिकारिणी परोपकारिणी सभा प्रयत्नशील है। जहाँ वेद, वेद-भाष्य व वैदिक साहित्य का प्रकाशन तथा वितरण परोपकारिणी सभा करती है, वहाँ वेद-गोष्ठी के माध्यम से गत बीस- बाईस वर्षों से वेद के विभिन्न विषयों को सामान्य लोगों के लिए प्रस्तुत करती आ रही है। वेद-गोष्ठी का आयोजन प्रतिवर्ष महर्षि के बलिदान समारोह के अवसर पर किया जाता है।

गोष्ठी के माध्यम से विद्वानों को अपने विचारों को जनता के सामने रखने का अवसर मिलता है तथा गोष्ठी के निबन्ध संगृहित कर सभा द्वारा प्रकाशित किये जाते हैं। जिससे जो लोग स्वयं गोष्ठी में उपस्थित होकर लाभ नहीं उठा सकते वे भी पुस्तक पढ़कर पूर्ण लाभ प्राप्त कर सकते हैं। परोपकारिणी सभा द्वारा वेद-गोष्ठी का प्रारम्भ स्वामी सत्यप्रकाश जी की प्रेरणा व अन्तर्राष्ट्रीय दयानन्द वेद-पीठ के सहयोग से हुआ था। वेद-पीठ का गोष्ठी के लिए सहयोग निरन्तर मिल रहा है, जिसके लिए परोपकारिणी सभा उसके महामंत्री सत्यानन्द आर्य एवं अधिकारियों का धन्यवाद करती है।

गोष्ठी के लेखों में पढ़े गये विचारों से सबका एकमत हो, ऐसा विचार विद्या के प्रचार-प्रसार में बाधक होगा। विचार के लिए लेखक महानुभाव उत्तरदायी हैं। उन्होंने पाठकों के विचार के लिए एक दिशा प्रदान की है। हम सभी लेखकों के आभारी हैं तथा उनके सतत सहयोग की कामना करते हैं। अन्त में हम कभी ज्ञान के प्रकाश से दूर न हों और आप सभी ज्ञान के लिए सतत प्रयत्नशील रहें। इसी भावना के साथ।

‘संश्रुतेन गमेमहि मा श्रुतेन विराधिषी’

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