मांसाहार (धर्म, अर्थ या विज्ञान के आलोक में) Mansahar (Dharm, Arth or Vigyan ke Alok me)
₹80.00
AUTHOR: | Acharya Agnivrat Naishthik |
SUBJECT: | वैदिक संध्या | Vedic Sandhya |
CATEGORY: | Comparative Study |
LANGUAGE: | Hindi |
EDITION: | 2018 |
PAGES: | 64 |
BINDING: | Paper Back |
WEIGHT: | 100 GRM |
संशोधित संस्करण
मांसाहार
(धर्म, अर्थ और विज्ञान के आलोक में)
संसार के समस्त प्रबुद्ध बंधुओ व बहनो !
जरा विचारें कि सृष्टि के रचयिता परमपिता परमात्मा ने इस संसार में फल, दूध, शाक, अन्न, मेवे, घृत आदि सुन्दर, सरस व स्वास्थ्यवर्धक पदार्थ खाने के लिए दिए हैं। तब क्यों हम निर्दोष निरीह जीवों के प्राणहरण का भयंकर कष्ट देकर मांस- मछली तथा भूणरूप अंडे जैसे गंदे अभक्ष्य पदार्थों का सेवन करते हैं? क्या हम नहीं जानते कि इस पापपूर्ण आहार के कारण न केवल अनेक रोगों का जन्म होता है, अपितु पर्यावरण का संकट उत्पन्न होकर भूकंप, तूफान, चक्रवात, सूखा, बाढ़ आदि प्राकृतिक प्रकोपों में भी भारी वृद्धि होती है। हिंसा, क्रोध, शोक व पीड़ा की तरंगें इस ब्रह्माण्ड को असंतुलित करके संसार में नाना अपराधों को भी जन्म- देती हैं।
आइए! धरती के सर्वश्रेष्ठ प्राणी कहाने वाले मानव ! उठो, जागो, विचारो और अपनी बुद्धिमत्ता का वास्तव में परिचय देकर शुद्ध शाकाहार अपनाओ और इस पृथ्वी को विनाश से बचाओ। उठो, निर्दोष-निरीह प्राणी आपसे अपने प्राणों की भिक्षा मांग रहे हैं। उनके लिए अपने हृदय में दया, करुणा और प्रेम को जगाओ।
Weight | 100 g |
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