रचनानुवाद कौमुदी
Rachananuvad Kaumudi

150.00

AUTHOR: Dr. Kapildev Dvivedi – डॉ. कपिलदेव द्विवेदी
SUBJECT: Sanskrit Learning
CATEGORY: Sanskrit Grammer
LANGUAGE: Sanskrit – Hindi
EDITION: 2023
PAGES: 263
PACKING: Paper Back
WEIGHT: 257 GRMS
Description

आत्मनिवेदन

(१) पुस्तक-लेखन का उद्देश्य

पुस्तक को पढ़ने के साथ ही पाठकों के हृदय में प्रश्न होगा कि अनुवाद और व्याकरण की अनेक पुस्तकों के होते हुए इस पुस्तक की क्या आवश्यकता है? प्रश्न का संक्षेप में उत्तर यही दिया जा सकता है कि यह पुस्तक उस आवश्यकता की पूर्ति के लिए लिखी गयी है, जिसकी पूर्ति अब तक प्रकाशित पुस्तकों से नहीं हो सकी है। पुस्तक- लेखन का उद्देश्य है-

(१) संस्कृत भाषा को सरल, सुबोध और सर्वप्रिय बनाना।

(२) संस्कृत- व्याकरण की कठिनाइयों को दूर कर सुगम मार्ग-प्रदर्शन करना।

(३) ‘संस्कृत भाषा अतिक्लिष्ट भाषा है’ इस लोकापवाद का समूल खण्डन करना।

(४) किस प्रकार से संस्कृत भाषा से अपरिचित एक हिन्दी भाषा जानने वाला व्यक्ति ४ या ६ मास में सुन्दर, स्पष्ट और शुद्ध संस्कृत लिख और बोल सकता है।

(५) संस्कृत भाषा के व्याकरण और अनुवाद सम्बन्धी सभी अत्यावश्यक बातों का एक स्थान पर संग्रह करना तथा अनावश्यक सभी बातों का परित्याग करना।

(६) अनुवाद और वाक्य-रचना द्वारा सभी व्याकरण के नियमों का पूर्ण अभ्यास कराना। व्याकरण को रटने की क्रिया को न्यूनतम करना।

(७) संस्कृत के प्रत्ययों के द्वारा सैकड़ों शब्दों का स्वयं निर्माण करना सीखना, जिनका प्रयोग हिन्दी आदि भाषाओं में प्रचलित है।

इस पुस्तक के लेखन में लेखक का उद्देश्य यह भी है कि यह पुस्तक तीन भागों में पूर्ण हो। यह द्वितीय भाग है, जो कि संस्कृत भाषा के ज्ञान के लिए प्रारम्भिक संस्कृत- प्रेमियों को लक्ष्य में रखकर लिखा गया है। इसमें अत्यावश्यक विषयों का ही संग्रह किया गया है। सरल और शुद्ध संस्कृत किस प्रकार सरलतापूर्वक निःसंकोच लिखी और बोली जा सकती है, इसका ही इसमें ध्यान रखा गया है।

अत्यावश्यक व्याकरण का ही इसमें संग्रह है, जो प्रारम्भकर्ताओं के लिए जानना अनिवार्य है। तृतीय भाग में उच्च व्याकरण तथा प्रौढ संस्कृत के लेखन के प्रकार का संग्रह रहेगा। अभी तक बी०ए०, एम०ए० तथा शास्त्री और आचार्य के छात्रों के लिए अनुवाद और निबन्ध की उत्तम पुस्तकें नहीं हैं। तृतीय भाग के द्वारा इस आवश्यकता की पूर्ति करना भी लेखक का लक्ष्य है।

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