Biography

1857 की क्रान्ति का पहला शहीद – मंगल पांडे
1857 Ki Kranti Ka Pahala Shaheed – Mangal Pandey

1857 की क्रान्ति का पहला शहीद मंगल पांडे, 1857 Ki Kranti Ka Pahala Shaheed - Mangal Pandey

1857 की क्रान्ति का पहला शहीद मंगल पांडे

बैरकपुर में एक सिपाही था जिसका नाम था मंगल पांडे। यह खबर पहुँच चुकी थी कि अंग्रेज अधिकारी सेना को भंग करना चाहते हैं। इसलिए प्रश्न यह था कि सिपाही तितर-बितर हो जाए या फौरन विद्रोह कर दिया जाए। विद्रोह की तारीख काफी दूर थी, तब तक ठहरना सम्भव नहीं था, क्योंकि तब तक ठहरने का मतलब यह होता कि नए कारतूसों का इस्तेमाल करने के लिए राजी होना पड़ता। इस प्रकार धर्म तो पहले ही नष्ट हो चुका होता। जोशीले होने के नाते मंगल पांडे पर इसका सबसे अधिक असर पड़ा। उन्होंने यह तय कर लिया कि ३१ मई तक ठहरा नहीं जा सकता।

मंगल पांडे ने लोगों को घूम-घूम कर समझाया पर लोगों ने उससे धैर्य रखने के लिए कहा। शायद इन लोगों ने ठीक ही कहा था कि एक जगह विद्रोह हो गया तो वह दबा दिया जायेगा। इसलिए हमें निश्चित तारीख पर विद्रोह करना चाहिए।

पर मंगल पांडे नहीं माने। उन्होंने बन्दूक ले ली और उसमें गोली भर ली। फिर वह परेड के मैदान में पहुंच गए और चारों तरफ शेर की तरह उछल-उछल कर कहने लगे- भाइयो उठो, आप पीछे क्यों रहते हो ? आओ और उठो, मैं आप को धर्म की सौगन्ध दिलाता हूँ। आजादी पुकार रही है कि हम फौरन अपने धोखेबाज शत्रुओं पर हमला बोल दें। रुकने का समय नहीं है।

इस प्रकार से मंगल पांडे ने ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध विद्रोह की घोषणा कर दी और वह प्रथम विद्रोह हुआ। (वह 29 मार्च 1857 का दिन था।)

वह परेड के मैदान में चिल्ला-चिल्ला कर लोगों को पुकारता रहा। पर सिपाहियों ने उसका साथ नहीं दिया। वे उन्हें देखते रहे। पर कोई कुछ नहीं बोला। मंगल पांडे की खबर अंग्रेज अधिकारी तक पहुंची और सारजेन्ट मेजर ह्यूसन ने आकर मंगल पांडे को देखा। उसने खड़े तमाशा देखने वाले सिपाहियों से कहा- मंगल पांडे को गिरफ्तार कर लो।

पर सिपाही एक बार मंगल पांडे की तरफ देखते, फिर अंग्रेज अफसर की तरफ देखते। उन्होंने अंग्रेज अफसर की आज्ञा मानने से न तो इन्कार ही किया और न उसे माना ही । इस तरह जब कई मिनट हो गये, तब वह अंग्रेज अफसर समझ गया कि वे उसकी बात मानने के लिए तैयार नहीं हैं। उधर मंगल पांडे बिल्कुल तैयार थे। उनके हाथ में गोली भरी हुई बन्दूक थी। वह रक्त देने और रक्त लेने के लिए तड़प रहे थे। मंगल पांडे ने अब बन्दूक सम्हाली।

ठांय ठांय ……….

मेजर ह्यूसन की लाश वहीं पर गिर पड़ी, क्योंकि मंगल पांडे का निशाना अचूक बैठा था। जब यह काण्ड हो गया, तो थोड़ी देर बाद एक अंग्रेज घटनास्थल पर आया। इस अफसर का नाम था लेफ्टिनेंट बाग। अब की बार यह जो अफसर आया था वह पैदल नहीं था, बल्कि घोड़े पर था।

अब मंगल पांडे ने उसकी तरफ गोली चलाई और वह अफसर तथा घोड़ा दोनों जमीन पर लुढ़कते दिखाई दिए। पर वह अफसर मरा नहीं था। उसने खड़े होकर मंगल पांडे पर अपनी पिस्तौल चलाई। मंगल पांडे अपनी बन्दूक भर रहे थे। गोली उन्हें लगी नहीं। उन्होंने तलवार निकाल ली और साथ ही उस अफसर ने भी तलवार निकाल ली। मंगल पांडे पर उस समय क्रांति का जोश पूरी तरह सवार था। उन्होंने बात ही बात में उस अफसर का काम तमाम कर दिया।

मंगल पांडे दो अंग्रेज अफसरों को मार चुके थे। थोड़ी ही देर में एक गोरा और आया। उसने पांडे पर हमला किया। वह अभी मंगल

पांडे पर टूट नहीं पाया था कि एक दूसरे सिपाही ने उस गोरे के सिर पर अपनी बन्दूक का कुन्दा दे मारा। इस प्रकार विद्रोह फैल गया और भारतीय सिपाहियों की तरफ से यह आवाज उठी-मंगल पांडे को हाथ मत लगाओ।

थोड़ी देर में एक बड़ा अफसर कर्नल व्हीलर वहां पर आया और उसने यह हुक्म दिया सिपाहियो, देखते क्या हो, बागी को गिरफ्तार कर लो।

बड़े अफसर को देख कर भारतीय फौजों की भीड़ कुछ देर तक चुप खड़ी रही। पर किसी ने आवाज उठायी, हम ब्राह्मण देवता का बाल बांका न होने देंगे। जब उस अफसर ने यह देखा तो वह घोड़े को एड़ लगा कर वहां से लौट गया। इस बीच मंगल पांडे सिपाहियों से यह कह रहे थे कि भाइयो, अब घड़ा भर चुका है, अब आप लोग विद्रोह का झण्डा उठाइए। पर सिपाही कुछ नहीं बोले।

इसके बाद सबसे ऊँचे अफसर जनरल हियरसे कुछ गोरे सिपाहियों को लेकर वहां आए। मंगल पांडे ने देखा कि गोरों की एक पूरी टुकड़ी आई है और भारतीय सिपाही मेरा पूरी तरह साथ नहीं दे रहे हैं। तब वह समझ गए कि अब मैं गिरफ्तार हो जाऊंगा। इस पर मंगल पांडे ने अपने सीने में बन्दूक दाग ली और वह वहीं गिर पड़े। पर मरे नहीं। उनका इलाज हुआ और जब वह ठीक हो गये तो उन पर बाकायदा मुकदमा चला। उन्हें फांसी की सजा दी गई।

1857 की 8 अप्रैल को उनको फांसी देना तय हुआ, पर फांसी देने के लिए कोई जल्लाद तैयार नहीं हुआ। तब कलकत्ता से जल्लाद बुलाए गए। कलकत्ता के जल्लाद भी जान पाते कि किसे फांसी दी जा रही है तो वे शायद इन्कार कर देते क्योंकि लोगों में विद्रोह की भावना बहुत फैल चुकी थी, पर उन्हें यह बताया नहीं गया था कि किसे फाँसी देनी है। इस तरह मंगलपांडे को फांसी दी गई।

इस प्रकार विद्रोह की तारीख के पहले ही मंगल पांडे ने विद्रोह का आरम्भ कर दिया। फिर धीरे-धीरे यह विद्रोह सारे भारत में फैला। जितनी भी तरह के लोग अंग्रेजों से नाराज थे, वे सब मिल गए। विद्रोहियों का कब्जा दिल्ली पर हो गया। पर यह कब्जा ज्यादा दिन नहीं रह सका और दूसरी जगह से फौजों ने आकर विद्रोह दबा दिया।

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