सांख्यदर्शनम् Sankhyadarshanam
₹500.00
AUTHOR: | Acharya Anand Prakash |
SUBJECT: | Sankhya Darshan |
CATEGORY: | Darshan |
LANGUAGE: | Sanaskrit – Hindi |
EDITION: | 2020 |
PAGES: | 419 |
PACKING: | Paperback |
WEIGHT: | 650 GRMS |
सांख्य दर्शनम् नामक पुस्तक आचार्य आनन्द प्रकाश द्वारा लिखी गई है। यह पुस्तक महर्षि कपिल द्वारा प्रणीत सांख्य दर्शन के छह अध्यायों को सम्मिलित करती है। इस दर्शन का मुख्य उद्देश्य प्रकृति और पुरुष की विवेचना करके पृथक-पृथक स्वरूप को प्रकट करना है, जिससे जिज्ञासु व्यक्ति बंधन के मूल कारण को जानकर अविद्या को नष्ट करके त्रिविध दुःखों से मुक्ति प्राप्त कर सके।
सांख्य-शास्त्र में २५ तत्व माने जाते हैं, और उनका विवरण उनकी सृष्टि और निर्माण में भूमिका का वर्णन करता है। इस दर्शन के प्राचीन भाष्यकार भागुरी भाष्य को आर्ष होने से जाना जाता था, लेकिन दुर्भाग्य से वर्तमान में यह उपलब्ध नहीं है। सांख्य-शास्त्र को चिकित्सा शास्त्र के समान चतुर्व्यूह माना जाता है, जहां चिकित्सा शास्त्र में रोग, रोग के कारण, आरोग्य और औषधि इन चार विषयों का विवरण होता है, वैसे ही सांख्य-शास्त्र में मोक्ष के लिए – हेय, हेयहेतु, हान, हानोपाय ये चार व्यूह सांख्य दर्शन में प्रमुखतः उल्लेखित होते हैं। इन व्यूहों में, त्रिविध दुःख को ‘हेय’ कहा जाता है। उन त्रिविध दुःखों से अत्यंत मुक्ति ‘हान’ होती है, जो प्रकृति और पुरुष के संयोग से उत्पन्न अविवेक को ‘हेयहेतु’ और विवेक की प्राप्ति को ‘हानोपाय’ कहते हैं।
इतना सब कुछ होने के बावजूद यह शास्त्र अपेक्षित से भी कम प्रमाणित हुआ है। इसका अच्छा से व्याख्यान नहीं हुआ है। मध्यकाल में जो भी व्याख्यान हुए, उन्होंने इस शास्त्र को नास्तिक दर्शन घोषित कर दिया। सूत्रों के सूत्रों से पृथक व्याख्यान किए गए। महर्षि दयानन्द ने इस शास्त्र को पढ़ाया और पढ़ाने में महत्व दिया, और कपिल मुनि को परमास्तिक घोषित किया, और सांख्य दर्शन को ईश्वर-विरोधी नहीं बताया, यह प्रतिपादित किया। उनके प्रेरणा से आर्य समाज के कई विद्वानों ने इसका अनुवाद और भाष्य किया है।
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