योग एक चेतना परक विज्ञान है। उसमें स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीरों को जागृत, सशक्त और प्रखर बनाने के लिए सोपान निर्धारित हैं । अक्सर हम इस महत्वपूर्ण जीवन को स्थूल शरीर मात्र समझने की भूल करते रहते हैं । इस स्थूल के पीछे कितने तथ्य, कितने रहस्य छिपे हैं इसकी जानकारी न हमें होती है और न ही हम अन्दर झांकना चाहते हैं ।
अस्थियों मांसपेशियों एवं रक्तवाहिनियों से बने इस शरीर को ही सब कुछ मानकर इसके लिए सुख संसाधनों की भरमार कर देना चाहते हैं और अधिक सुख की कामना से भौतिकता को ही लक्ष्य बना लेते हैं, जो मानव जीवन की गरिमा को भुला देने जैसा है। हमने भौतिक जगत में इतनी तेजी से प्रगति की है, सुख सुविधाओं के इतने सरंजाम इकट्ठे किये हैं
नवीनतम टेक्नोलॉजी के माध्यम से स्थूल शरीर की इतनी सेवा की है कि हम खुद को भूल चुके हैं। ‘स्व’ का अर्थ क्या है, स्व की विशेषता क्या है, इसके भीतर क्या छिपा है इसकी सीमाएं कहां तक हैं – यह एक व्यापक क्षेत्र है और निश्चित रूप से इसका ज्ञान, आधुनिक विज्ञान की इस चकाचौंध प्रगति से कहीं गूढ़ एवं अधिक उत्साजनक है ।
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