श्रीमद्दयानन्द प्रकाश
Shrimaddayanand Prakash

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AUTHOR: Swami Satyanand
SUBJECT: श्रीमद्दयानन्द प्रकाश – Shrimaddayanand Prakash
CATEGORY: Biography of Swami Dayanand Sarswati
LANGUAGE: Hindi
EDITION: 2018
PAGES: 407
BINDING: Hard Cover
WEIGHT: 889 GRMS

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Description

महर्षि दयानन्द सरस्वती के उच्चतम जीवन की घटनाओं का पाठ करते समय हमें तो ऐसा प्रतीत होने लगता है कि आज तक जितने भी महात्मा हुए हैं, उनके जीवनों के सभी विन्ध्यावर अंश दयानन्द में पाये जाते थे। वह गुण ही न होगा जो उनके सर्व-सम्पत्र स्वरूप न विकसित हुआ हो। महाराज का हिमालय की चोटियों पर चकर लगाना, की यात्रा करना, नर्मदा के तट पर घूमना, स्थान-स्थान पर साधु-सन्तों के शुभ दर्शन और सत्संग प्राप्त करना, मंगल नाम श्रीराम को स्मरण कराता है।

कर्णवास में कर्णसिंह के बिजली की भाँति चमकते खड्ग को देखकर भी महाराज नहीं काँपे, तलवार की अतितीक्ष्णधारा को अपनी ओर झुका हुआ अबलोकन करके भी निर्भय बने रहे और साथ ही गम्भीर भाव से कहने लगे कि आत्मा अमर है, अविनाशी है! इसे कोई हनन नहीं कर सकता। यह घटना और ऐसी ही अन्य अनेक घटनायें ज्ञान के सागर श्री कृष्ण को मानस नेत्रों के आगे मूर्त्तिमान बना देती हैं। ऐसा प्रतीत होने लगता है कि मानो वे ही बोल रहे हैं।

दीन-दुखियों, अपाहिजों और अनाथों को देखकर श्रीमदयानन्दजी क्राइस्ट वन जाते हैं। पुरन्धर वादियों के सम्मुख श्री शङ्कराचार्य का रूप दिखा देते हैं। एक ईश्वर का प्रचार करते और विस्तृत भ्रातृभाव की शिक्षा देते हुए भगवान् दयानन्दजी श्रीमान् मुहम्मदजी प्रतीत होने लगते हैं।

ईश्वर का यशोगान करते हुए स्तुति प्रार्थना में जब प्रभु दयानन्द इतने निमन्न हो जाते हैं कि उनकी आँखों से परमात्म-प्रेम की अविरल अश्रुधारा निकल आती हैं, गद्गद् कण्ट और पुलकित-गात हो जाते हैं, तो सन्तवर रामदास, कबीर, नानक, दादू, चेतन और तुकाराम का समय बन्ध जाता है। वे सन्त- शिरोमणि जान पड़ते हैं। आर्यत्व की रक्षा के समय वे प्रातः स्मरणीय प्रताप, श्री शिवाजी तथा गुरु गोविन्दसिंह जी का रूप धारण कर लेते हैं।

महाराज के जीवन को जिस पक्ष से देखें, वह सर्वांग सुन्दर प्रतीत होता है। त्याग और वैराग्य की उसमें न्यूनता नहीं है। श्रद्धा और भक्ति उसमें अपार पाई जाती है। उसमें ज्ञान अगाध है। तर्क अथाह है। वह समयोचित मति का मन्दिर है। प्रेम और उपकार का पुत्र है। कृपा और सहानुभूति उसमें कूट-कूटकर भरी पड़ी है। वह ओज है, तेज है, परम प्रताप है, लोक-हित है और सकल कला सम्पूर्ण है।

-सत्यानन्द

स्वामी जी के जीवन पर अनेकों पुस्तकें लिखी जा चुकी है किन्तु स्वामी सत्यानन्द जी द्वारा लिखी गई पुस्तक “श्रीमद्दयानन्द प्रकाश” एक अनोखी और मनोहर गद्यात्मक शैली में लिखा हुआ रोचक ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ के अध्याय का विभाजन रामायण के आधार पर काण्ड़ और सर्ग रूप में किया गया है।

इसमें स्वामी दयानन्द जी के चरित्र का मार्मिक और भावनात्मक चित्रण किया है। इस पुस्तक को लेखक ने पांच वर्षों के अथक परिश्रम और पर्य्यटन के आधार पर लिखा है।

लेखक ने कई स्थानों से ऋषि दयानन्द से सम्बन्धित सामग्री को इकट्ठा किया और अनेकों समाचार पत्रों और ऋषि दयानन्द के अनेकों वृद्ध अनुयायियों के द्वारा प्राप्त सामग्रियों का पुस्तक में संकलन किया है। इस पुस्तक में देवेन्द्रनाथ जी और पं. लेखराम जी की सामग्रियों का भी उपयोग किया है।

आशा है कि स्वामी जी पर लिखा हुआ यह जीवन चरित्र अवश्य ही पाठकों में ऋषि दयानन्द के समान ही श्रेष्ठ गुणों का विकास करेगा।

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