यह ग्रन्थ वैदिक सम्पत्ति के महत्वपूर्ण विषयों पर प्रकाश डालता है, जिन्हें मानव सभ्यता का आधार माना जाता है। इसमें भाषा और लिपि के उत्थान, दार्शनिक तत्वों के पूर्ववर्ती, भौतिकवाद, साम्यवाद, प्रकृतिवाद आदि, आर्य सभ्यता का महत्त्व, और वेदों की अपौरुषेयता के विषय में चर्चा की गई है। इसमें वेद, पुराण, उपनिषद्, महापुरुषों के वचनों से सभी इन प्रश्नों को संदर्भित किया गया है।
वर्तमान समय में, ईश्वर, धर्म, वेद, और मोक्ष जैसी बातें कुछ लोगों के लिए असंगत लग सकती हैं। लेकिन इस ग्रंथ में प्रतिपादित किया गया है कि ईश्वर, धर्म, और मोक्ष महत्वपूर्ण हैं। इनके बिना मानव समाज की आर्थिक, सामाजिक, और राष्ट्रीय समस्याओं का समाधान संभव नहीं है। इन विचारों के बिना, मानव में समता, दया, प्रेम, और त्याग के विचार नहीं हो सकते।
इस ग्रंथ में जातिवाद, सम्प्रदायवाद, और कौमवाद के खिलाफ युद्ध किया गया है, और आर्य सभ्यता के वास्तविक स्वरूप को बताने का प्रयास किया गया है। भौतिकविज्ञान, जीवविज्ञान, पशुविज्ञान, और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में आज भी विशेष ध्यान दिया जाता है, और वेदों में उल्लेखित विज्ञानिक तथ्यों को विस्तार से विवेचित किया गया है।
इस पुस्तक को पढ़कर वैदिक संस्कृति, भारतीय परंपरा, और भारतीय ज्ञान को समझने के लिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण है।
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