प्राक्कथन
जैसे जैसे प्रबंधन की दिशा में आगे बढ़ता गया , इस सत्य की प्रमुखता बढ़ती गयी । तकनीकी तथा प्रबंधन कार्य से सेवा निवृत्ति के बाद वेदाध्ययन की ओर आगे बढ़ा तथा विचार को मूर्त रूप पाया । इस पुस्तक में एक चिन्तन प्रस्तुत किया गया है जिसमें ऋग्वेद के पहले ही सूक्त ( ऋग्वेद 1.1.1 से 1.1.9 पर्यन्त 9 मन्त्र ) में आधुनिक प्रबंधन के संपूर्ण आयाम विद्यमान हैं ।
चारों वेदों में प्राचीनतम वेद ऋग्वेद है , वहीं आधुनिक प्रबंधन युग लगभग 200 वर्ष आधुनिक उद्योगीकरण से प्रारम्भ होकर अमेरिका , यूरोप , जापान , चीन तथा भारत आदि देशों में विकिसित हुआ ।
इस पुस्तक को 10 अध्यायों में विभक्त किया गया है ।
भूमिका नामक प्रथम अध्याय में वेदों की उत्पत्ति , वेदों का ज्ञान , काल , देवता , ऋषि , छन्द आदि विषयों का संक्षिप्त परिचय देते हुए वेद भाष्य एवं भाष्यकारों की पद्धति व विचारों पर चर्चा की है ।
पुस्तक के विषय के संदर्भ में वैदिक ज्ञान व आधुनिक प्रबंधन के बीच संबन्ध स्थापित करने पर चिन्तन प्रस्तुत किया है ।
अध्याय 2 से अध्याय 10 पर्यन्त ऋग्वेद के प्रथम सूक्त के 9 मन्त्रों ( ऋग्वेद 1.1.1 से 1.1.9 पर्यन्त ) को अध्यायशः लिया गया है ।
प्रत्येक अध्याय में एक मन्त्र के भाष्य को लिया है । उसके पदों की व्याख्या को विषय के अनुरूप लेते हुए पदों व मन्त्र की नये रूप में व्यञ्जनात्मक व्याख्या की गयी है ।
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