वैदिक माइक्रोबायोलॉजी- एक वैज्ञानिक दृष्टि Vedic Microbiology A Scientific Vision
₹500.00
AUTHOR: | R C Dubey |
SUBJECT: | वैदिक माइक्रोबायोलॉजी- एक वैज्ञानिक दृष्टि | Vedic Microbiology A Scientific Vision |
CATEGORY: | Vedic Science |
LANGUAGE: | Hindi |
EDITION: | 2022 |
PAGES: | 164 |
ISBN: | 9789386081179 |
PACKING: | Hard Cover |
WEIGHT: | 380 GRMS |
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यह सर्वमान्य सत्य है कि अपौरुषेय वेद विश्व का प्राचीनतम ग्रंथ है ।
हमारे तत्त्ववेत्ता ऋषियों द्वारा हिमालय की कन्दराओं में गहन साधना के पश्चात , ऋचाओं के रूप में प्राप्त ईश्वरीय ज्ञान को सर्वजन हिताय सकल विश्व को दिया जिसे वेद कहा जाता है । वेदज्ञान किसी एक ऋषि नहीं अपितु अनेक ऋषियों के ज्ञान का समूह है जो कई सहस्र ऋचाओं के रूप में संकलित किया गया है ।
उन ऋचाओं में विविध आयामों जैसे ज्योतिष , गणित , भौतिकी , रसायन , आयुर्वेद , आयुर्विज्ञान , विज्ञान , कृषिविज्ञान , सूक्ष्मजैविकी , भूगोल , अन्तरिक्ष विज्ञान आदि का अपार भण्डार है । सैकड़ो बार विदेशी आक्रान्ताओं एवं लुटेरों के कारण हमारे तक्षशिला और नालन्दा विश्वविद्यालय का प्राचीनतम की क्रूरता पुस्तकालय जलकर समाप्त हो गया ।
विदेशी लुटेरों तथा पाश्चात्य संस्कृति के बलात् प्रवेश एवं धन के प्रलोभन से मन – मस्तिष्क के परिवर्तन के कारण हजारों वर्ष प्राचीन संस्कृति , ज्ञान एवं परम्पराओं से आधुनिक भौतिकवादी समाज दूर होता गया । धीरे – धीरे हम भारतीय परम्पराओं से विमुख होते गये । वेद का पठन – पाठन त्यागकर केवल कर्मकाण्ड को ही स्वीकार कर लिया ।
किन्तु कोई तभी तक जीवित रह सकता है जब तक उसकी संस्कृति जीवित रहती भी राष्ट्र है , क्योंकि किसी भी राष्ट्र की संस्कृति उसकी जीवन्त आत्मा होती है । सैकड़ो वर्षों के संघर्ष से मिली स्वतंत्रता के पश्चात् यह देश भाषाई विवादों सहित अन्य विवादों में फंसा रहा । हम आपस में ही लड़ते रहे तथा स्वदेशी और विदेशी दुश्मन हमारे देश को बांटने का षणयंत्र करते रहे । यह क्रम अभी भी चल रहा है ।
स्वतंत्रता के बाद से ही भारतवर्ष की शिक्षा – व्यवस्था भारतीय संस्कृति पर आधारित न होकर मैकाले की शिक्षा पद्धति पर आधारित हो गयी ।
फलतः इसके कुप्रभाव से युवावर्ग भारतीय संस्कृति एवं परम्पराओं से अछूता होता गया । इसके विपरीत विदेशी अब भारतीय धर्म , दर्शन , संस्कृति , योग , व्याकरण आदि सीखने के लिये भारतवर्ष आने लगे हैं ।
देश – विदेश में भारतीय संस्कृति का डंका बजाने वाले सन्यासियों जैसे स्वामी दयानन्द सरस्वती , स्वामी श्रद्धानन्द , स्वामी विवेकानन्द , महर्षि अरविद आदि अनेकानेक महापुरुषों के योगदान को कभी भी विस्मृत नहीं किया जा सकता । प्राचीन भारतीय संस्कृति की नींव पर आधारित स्वामी श्रद्धानन्द की इस पावन तपस्थली गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय में रहकर मैं भी अभिभूत होता रहा ।
विचार में आता रहा कि सूक्ष्मजैविक विज्ञान की परिधि से निकल कर वेदज्ञान की पुनीत जल की कुछ छीटों को यदि अपने ऊपर डाल लूँ तो सम्भवत : इस पावन स्थल पर आकर मेरा रहना सार्थक हो जायेगा । किन्तु मेरे साथ सबसे बड़ी बाधा है कि मैं न तो संस्कृत का छात्र रहा हूँ और न वेद का , परन्तु अपनी संस्कृति से मुझे अगाध लगाव एवं अतीव प्रेम है । इस दुर्गम यात्रा पर निकलना मेरा दुस्साहस ही कहा जा सकता है ।
मेरा साहस उस समय बढ़ जाता था जब सोचता था कि ईश्वर की कृपा होने पर यदि ‘ मूकं करोति वाचालं पंगु लंघयते गिरिम् ’ हो सकता है तो मेरा सपना साकार क्यों नहीं हो सकता ?
यही सोचकर मैने ‘ वैदिक माइक्रोबायोलॉजी- एक वैज्ञानिक दृष्टि ‘ के स्वप्न को साकार करने की यात्रा प्रारम्भ कर दिया । ‘ वैदिक माइक्रोबायोलॉजी- एक वैज्ञानिक दृष्टि ‘ पुस्तक में वेद , वैदिक काल तथा आर्यों का संक्षिप्त परिचय के साथ ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति , सूक्ष्मजीवों की व्याप्ति एवं उनका वर्गीकरण , मानव स्वास्थ्य एवं रोगकारी क्रिमियाँ , क्रिमियों के द्वारा उत्पन्न व्याधियों तथा क्रिमियों का विनाश और अग्निहोत्र की वैज्ञानिकता पर कुछ चयनित वैदिक मंत्रों का , हिन्दी और अंग्रेजी मे अर्थ सहित उचित स्थानों पर चित्रों के माध्यम से वैज्ञानिक विश्लेषण किया गया है ताकि विज्ञान और अन्य विषयों के पाठकों को इसके तत्त्वज्ञान का सरलतापूर्व हो सके ।
जिस प्रकार विद्यार्थी अपनी जिज्ञासा को तृप्त करने के लिये अपने शिक्षकों से प्रश्न पूछते है और शिक्षक उन्हें अपने उत्तर से संतुष्ट करता है उसी प्रकार इस पुस्तक में प्रश्नोत्तर के माध्यम सरल हिन्दी भाषा में अर्थ के साथ वैज्ञानिक विश्लेषण किया गया है । भारतीय विश्वविद्यालयों में गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय का सूक्ष्मजीविकी विभाग ही ऐसा विभाग है जहाँ पर स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर पर वैदिक माइक्रोबायोलॉजी को एक इकाई के रूप में पाठ्यक्रम में समाहित किया गया है । वैदिक माइक्रोबायोलॉजी पर किसी भी पुस्तक का प्रकाशन अभी तक किसी ने नहीं किया है ।
आशा है कि मेरा यह लघु प्रयास पाठकों को रुचिकर लगेगा तथा वैदिक माइक्रोबायोलॉजी पर ऋषियों द्वारा दिये हुये वेदज्ञान को वैज्ञानिक विश्लेषण सहित अर्जन करने में सफल होंगे ।
इसमें प्रयुक्त अन्य वैज्ञानिक शोधकर्ताओं के विचारों का संदर्भ रूप में उल्लेख किया गया है । इसके लेखन कार्य में विभागीय सहयोगियों से सतत् प्रेरणा मिलती रही है ।
इस कार्य को सम्पादित करने के लिये मेरे सहयोगी डॉ ० वेद प्रकाश शास्त्री , डॉ ० डी ० के ० माहेश्वरी , प्रो ० नवनीत एवं वरिष्ठ टेक्नीशियन श्री चन्द्रप्रकाश आर्य के विविध प्रकार के सहयोग के लिये मैं आभारी हूँ । मैं प्रो ० मनुदेव बन्धु और प्रो ० दिनेश चन्द्र शास्त्री ( वेद विभाग ) का आभार प्रकट करता हूँ जिन्होने मूललिपि में संशोधन करके अनेक त्रुटियों को दूर किया है ।
मैं प्रोफेसर रूप किशोर शास्त्री , कुलपति , गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय , अपने अग्रजों श्री लाल चन्द दुबे और डॉ ० हरिश्चन्द्र दुबे तथा पूज्या माँ भारती का विशेष आभारी हूँ जिनसे सतत् प्रोत्साहन एवं सहयोग प्राप्त होता रहा है । इस पुस्तक के सम्पादन , संशोधन एवं उत्कृष्ट बनाने में विशेष सहयोग के लिये मैं डॉ ० दया शंकर त्रिपाठी ( काशी हिन्दू विश्वविद्यालय , वाराणसी ) का हृदय से आभारी हूँ ।
रमेश चन्द्र दुबे
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