वेद सरल परिचय (4 पुस्तकें)
Veda Saral Parichay (4 Books)

320.00

  • By :Dr. Bhavanilal Bharatiya
  • Subject :Introduction of Four Vedas
  • Category :Vedas
  • Edition :N/A
  • Publishing Year :2017
  • SKU# :N/A
  • ISBN# :N/A
  • Packing :4 Books
  • Pages :440
  • Binding :Paperback
  • Dimentions :21cm X 13cm
  • Weight :550 GRMS
Description

प्रस्तावना

मानव जाति के इतिहास में वेदों को संसार का सर्वाधिक प्राचीन ग्रन्थ स्वीकार किया गया है । भारतीय वैदिक परम्परा में वेदों को ईश्वर – प्रदत्त , अपौरुषेय ज्ञान माना गया है । विभिन्न शास्त्रकारों , धर्माचार्यों , सम्प्रदाय प्रवर्त्तकों तथा दार्शनिकों ने वेदों को मानव के लिए उपयोगी ज्ञान का भण्डार तथा धर्माधर्म , कर्त्तव्याकर्त्तव्य तथा विधि – निषेध का निर्देशक स्वीकार किया है । व

र्तमान समय में आर्यसमाज के प्रवर्त्तक ऋषि दयानन्द ने लुप्त वैदिक चर्चा का पुनरुद्धार किया और जनसाधारण के लिए वेदों में निहित शाश्वत सत्य को प्रकट करने के लिए इन ग्रन्थों का हिन्दी तथा संस्कृत में विद्वत्तापूर्ण भाष्य लिखना आरम्भ किया । दैव दुर्विपाक से वे इसे पूरा नहीं कर सके ।

स्वामी दयानन्द का लिखा ऋग्वेद का भाष्य ( सातवें मण्डल के 61 वें सूक्त के दूसरे मन्त्र पर्यन्त तथा यजुर्वेद का सम्पूर्ण भाष्य आज पाठकों के लिए उपलब्ध है । वेदों का अध्ययन करने के पहले एक सामान्य पाठक को वेदों के विषय में क्या कुछ जानना चाहिए , यह बताने के लिए ऋषि दयानन्द ने ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका लिखी , जिस में वेदों की उत्पत्ति , वैदिक ज्ञान की नित्यता , वेदसंज्ञा किन ग्रन्थों की है , वेदों के पठन – पाठन का अधिकार मनुष्यमात्र को है , जैसे विषयों की विवेचना की गई है ।

मनु तथा अन्य सभी आचार्यों ने वेदों को मानवोपयोगी ज्ञान – विज्ञान का मूल स्रोत तथा सर्व विद्यामय माना है । इसी तथ्य की पुष्टि के लिए दयानन्द ने इस वेद – भूमिका में वेदों में निहित विभिन्न आध्यात्मिक , धार्मिक , दार्शनिक , सामाजिक तथा ज्ञान – विज्ञान मूलक विद्याओं की उपस्थिति सप्रमाण दर्शायी है । जब दयानन्द ने वेदों को समस्त विद्याओं का मूल तथा विभिन्न ज्ञान – विज्ञान का उत्स बताया तो उन्होंने कोई नई बात नहीं कही थी ।

यदि हम मनु जैसे मानवी संविधान के प्रथम निर्माता की वेद विषयक सम्मति जानने की चेष्टा करें तो हमें विदित होगा कि वह भी वेदों को सर्वज्ञान युक्त मानता है – सर्वज्ञानमयो हि सः । साथ ही मनु ने यह स्पष्ट कर दिया कि वेद ही मानव जाति के विभिन्न वर्गों ( पितर , देव , मनुष्य ) को सही रास्ता दिखाने तथा सत्पथ पर चलने में सहायता देने वाले सनातन चक्षु हैं ।

यह परमात्मा का सदा रहने वाला नित्य ज्ञान है । इसलिए इस में न तो किसी प्रकार की शंका की जानी चाहिए और न वेदप्रमाण को किसी अन्य प्रमाण की आवश्यकता रहती है । मनु का यह भी कथन है कि मानव समाज के ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य तथा शूद्र नाम वाले चारों घटक , द्युलोक , अन्तरिक्ष लोक तथा पृथ्वी लोक , ब्रह्मचर्य , गृहस्थ , वानप्रस्थ तथा संन्यास आश्रमवासियों के कर्त्तव्य आदि सभी विषय वेदों में आये हैं ।

यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि जो कुछ हुआ है , हो रहा है तथा भविष्य में होगा वह सब वेदों से ही प्रसिद्ध होता है ।

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