साहित्य समीक्षा :
” चारित्रबोध” – नवीन हिन्दी ग्रन्थ
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– समीक्षक : भावेश मेरजा
● पुस्तक का शीर्षक : “चारित्रबोध” (भाग-1)
● कुल पृष्ठ : 144
उन्नीसवीं शताब्दी में महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने वेदों की दिव्य शिक्षाओं को पुनर्व्याख्यायित कर मानवसमाज को सत्यार्थ प्रदान करने का युगान्तरकारी कार्य किया। उन्होंने अपनी वैदिक विचार क्रान्ति को वैश्विक आयाम प्रदान करने के लिए जैसे प्रवचन, भाषण, शंका-समाधान तथा शास्त्रार्थों का आश्रय लिया वैसे ही उन्होंने ग्रन्थ लेखन को भी अपने सशक्त उपकरण के रूप में प्रयुक्त किया। उनके ग्रन्थों को हम वैदिक ज्ञान सागर का प्रवेशद्वार – entry point कह सकते हैं।
स्वामी ध्रुवदेव जी परिव्राजक ने “चारित्रबोध” नामक पुस्तक में महर्षि दयानन्द के आचार से सम्बन्धित कतिपय वचनों का रोचक संग्रह प्रस्तुत किया है।
इस पुस्तक में महर्षि दयानन्द कृत सत्यार्थ प्रकाश के 198, ऋग्वेदादि भाष्य भूमिका के 38, संस्कारविधि के 22 और व्यवहारभानु के 43 मन्तव्य स-शीर्षक उपस्थित किए गए हैं। ग्रन्थ के आरम्भ में इन सभी विषयों की अनुक्रमणिका दी गई है।
श्री आचार्य ज्ञानेश्वर जी आर्य ने इस ग्रन्थ का ‘आशीर्वचन’ और श्री स्वामी विवेकानन्द जी परिव्राजक ने इसका ‘प्रकाशकीय’ लिखा है।
ग्रन्थ में कठिन शब्दों के सुगम अर्थ भी टिप्पणी के रूप में दिए गए हैं जिससे महर्षि दयानन्द के मन्तव्यों को सुगमता से समझने में पाठकों को विशेष सहायता मिलती है।
ग्रन्थ के अन्त में महर्षि दयानन्द द्वारा व्याख्यात वैदिक सनातन धर्म के 11 लक्षण, वेदादि शास्त्रों में प्रयुक्त परमेश्वर के 21 नामों के महर्षि दयानन्द कृत अर्थ तथा आर्यसमाज के 10 नियम प्रस्तुत किए गए हैं।
इस पुस्तक के स्वाध्याय से पाठक को महर्षि दयानन्द की विचार सम्पदा का परिचय सुगमता से हो सकता है। इस पुस्तक के द्वारा वह आसानी से वैदिक आस्थाओं का परिचय प्राप्त कर सकता है।
महर्षि दयानन्द जैसे महामानव की वैचारिक सम्पत्ति को ऐसी आकर्षण एवं सुगम शैली में जिज्ञासुओं के लिए सुलभ कराने के लिए लेखक श्री स्वामी ध्रुवदेव परिव्राजक तथा प्रकाशन संस्था दर्शन योग धर्मार्थ ट्रस्ट – दोनों को बधाई !
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